फिर नहीं खिलेगा यह गुलमोहर,( जाना कमलेश्वर का )


गाँधी शांति प्रतिष्ठान , न्यू दिल्ली में आयोजित होने वाला प्रथम सुधा सम्मान समारोह लगभग एक नविन प्रयोग था.चुकी मुझे भी इस समारोह में शिरकत करना था, सो इस प्रयोग की प्रतिक्रिया पर मन में किंचित संदेह भी था। लेकिन समारोह की घ्श्ना के बाद जिस तरह से समाचारों का प्रवाह आया , उससे लगा की सम्मान समारोह को लेकर पर्याप्त उत्साह और सक्रियता भी है.इस समारोह में सम्मानित होने वाले प्पंच लोगों में बिहार से डॉ। अमरेन्द्र और रंजन को वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र यादव, असगर वजाहत और मैत्रेयि पुष्पा ने चुना था.मुझे इन्ही लोगों के साथ भागलपुर से दिल्ली की यात्रा करनी थी। हमारे साथ थे प्रसिध कथाकार शिव कुमार शिव, जिनके उपन्यास तुम्हारे हिस्से का चाँद का लोकार्पण भी होना था.पुरस्कारों की घोषणा सरोकारों के सौंदर्य और जीवन के संगीत के बहार और अन्दर साहित्य सम्मान के सुरों से गुंजित हो रहा था। कथाकार शिव कुमार शिव, रंजन, और डॉ। अमरेन्द्र के साथ दिल्ली तक की यात्रा मन को उत्साह से सरोबर किये हुए था। देश के मूर्धन्य कथाकार राजेंद्र यादव और कमलेश्वर को लेकर आश्था का राग नए सिरे से उगता और मिटता जा रहा था....................न जाने क्यूँ मैं अपनी ही नज़र में बार आदमी बन गया था..............यात्रा की थकन के बावजूद जब दिल स्टेशन पर उतरा तो एकदम जीवंत, त्ताज़ा और और स्फूर्तिदायक था। सम्मान प्राप्त करने वालों के लिए होटल कैसल मेंकमरा बुक था जबकि मैं अपने छोटे भाई के पास रुक गया और शिव जी राजेंद्र यादव के घर चले गए.सम्मान समारोह २८ तारीख को था। इससे पहले ही शिवजी ने मुझे कमलेश्वर जी से मिलाने का वादा किया था। मैंने अपने मोबाइल से शिवजी का नंबर मिलाया और लगभग म्मानुहार वाले लहजे में कहा भैया कमलेश्वर जी से बात हुयी क्या? उन्होंने कितने बजे का समय दिया है.?उन्होंने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा की उनका मोबाइल आउट ऑफ़ रंगे है, जैसे ही उनसे बात होगी मैं तुमको सूचित कर दूंगा। ठीक ११ बजे मेरा मोबाइल बजा , शिव जी का nambar देखकर मेरा मन कुछ बहुमूल्य चीज़ मिल जाने की ख़ुशी से भर गया ..इस उम्मीद से फोने उठाया की शायद शीवे जी ने कमलेश्वर से मिलने का वक़्त तय कर लिया है.मगर फोने उठाने के बाद कण ने जो कुछ सुना मनो असमान से धरती पर गिर परा.शिवजी ने कहा टीवी खोलकर देखो कमलेश्वर नहीं रहे .यह संवाद मेरे लिए वैसा ही था जैसे आनंद के अतिरेक में ए आदमी का पैर बिजली के तर पर पर जाये ..मैं हतप्रभ मोबाइल को देखने लगा ॥ पूरी रात बेचैनी में गुजरी .समझ में नहीं आ रहा था ....क्या करू? साहित्य और पत्रकारिता को सामान रूप से साधनइ वाले कमलेश्वर, कितने पाकिस्तान के उपन्यासकार कमलेश्वर, युग और चंद्रकांता के कमलेश्वर , रजा निर्बंशिया के कमलेश्वर , आंधी और दी बर्निंग ट्रेन के कमलेश्वर । हिंदी साहित्य को समर्थवान बनाने वाले कमलेश्वर ... कई रूपों में कमलेश्वर दिलो दिमाग में उतरते रहे....................
शिव जी को दुबारा फोन करना क्लाजिमी नहीं समझा, मगर रहा भी नहीं गया .शिव जी का नंबर लग गया॥ बोलो ॐ सुना तो कहा कमलेश्वर जी का साक्षात्कार तो नहीं ले सका पर, उनकी महाप्रयाण की इस यात्रा में शामिल होना चाहता हूँ.......
.................अर्थी की बंधाई हो रही है, ............दो औरतें बिलख रही हैं.............इस बिलखने में कोई स्वर नहीं है..............गलना मन का है.....और बहना आँखों का ...............मैं किसी को नहीं पहचानता , सब बरे लोग हैं...........सबों के चेहरे पर सन्नाटा टुटा है..............अनहोनी के हो जाने का भाव............हाथों में फूल, श्रद्धा के समर्पण के सिलसिला ..............आरती तैयार हो गयी है......जिसे आजतक कोई नहीं बाँध सका उसे काल ने बाँध लिया .........दयानंद घाट, लोदी रोड.............कमलेश्वर के शारीर कों एम्बुलेंस से उतारा गया ...........सभी कों नहीं पहचानता , पहचानना भी नहीं चाहता पहचानना चाहता भी नहीं ..........पर जो चेहरे पह प् रहा हूँ...वे हैं...............पंकज बिष्ट, जनसत्ता के संपादक ॐ थानवी, चित्रा मुद्गल , पद्मा सचदेव, लीलाधर मंडलोई, महेश दर्पण, गुन्जेश गुंजन, प्रदीप पन्त, कथादेश के संपादक हरिनारायण, असगर वजाहत, अनवर जमाल, रंजन, अमरेन्द्र और राजेंद्र यादव.............................यह कमलेश्वर की अनंत यात्रा है.........................और भीर में अर्थी कों कन्धा देने का मौका मुझे भी मिला ........अर्थी पर मौजूद उनका शारीर फूलों से ढंका है, सब जानते हैं ये गुलमोहर फिर नहीं खुलेगा................

टिप्पणियाँ