तुम मुझे काटोगे जितनी बार, कोपलें फूटेंगी उतनी बार, हर बार पहले से ज्यादा सीधी औए तनी हुयी ..............

तुम मुझे काटोगे जितनी बार, कोपलें फूटेंगी उतनी बार, हर बार पहले से ज्यादा सीधी औए तनी हुयी .............. 
जब ब्रेख्त ने ये पंक्तियाँ कही होंगी तो इसका मतलब आम आदमी के संघर्ष की जिजीविषा रही होगी...पर हम यदि इसको भारत में जाती व्यवश्ता से जोरकर देखें तो ये बातें सोलह आने सटीक बैठती है...चाहे जाती व्यवाश्था को मिटने की कितने भिओ दावें किये जाये ...पर समय के साथ ये अपना रूप बदल-बदल कर हमारे सामने आ रही है..या यूं कहें की ये बदले हुए रूप ज्यादा खतरनाक मने जा सकते हैं...अफ़सोस की दलितों के साथ होता ये भेदभाव आज भी इंसान को इंसान मानने से इनकार करता हैं . राज्श्स्थान में एक प्रोफ़ेसर के द्वारा किया गया कृत्य  इसकी एक बानगी है..जब राष्ट्र निर्माण करने वाले लोगों की ये भूमिका होती है तो ये अनुमान सहज लगाया जा सकता है की इस्थिति कितनी बदतर है. 
बिहार में विधानसभा चुनाव शुरू होने  जा रहा है , जाति व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण होकर वोट में तब्दील हो गयी है..

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