हरिवंश भारत के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का विशेष विमान, ‘खजुराहो‘ हनोई की धरती पर उतरा,इसके पहले ही इस मिट्टी को झुक कर प्रणाम किया. देशज शैली-परंपरा में. मन ही मन.
जब हमारी पीढ़ी सजग हो रही थी, तब दुनिया एकसूत्र में नहीं बंधी थी. न बनते ग्लोबल विलेज की दूर-दूर तक आहट थी. सूचना क्रांति या कंप्यूटर उद्भव ने दुनिया को एक तानाबाना में नहीं बांधा था. तब देश के अत्यंत पिछड़े, कटे और अविकसित गांवों तक वियतनाम की आहट पहुंची थी. हो ची मिन्ह के तप, त्याग, संघर्ष और सरल जीवन के प्रेरक प्रसंग भारत की फिजां-हवाओं में गूंजते थे. तब बाजार, विचार को मंच से उतार नहीं चुका था. चरित्र और प्रतिबद्धता, बीते दिनों के बोझ नहीं बने थे.
उसी दौर में वियतनाम, हो ची मिन्ह और वियतनामियों के प्रति यह आदर, सम्मान और श्रद्धा दुनिया में फैले और बढ़े. इसलिए, वियतनाम की धरती पर पांव रखने (प्रधानमंत्री के विशेष विमान के उतरने) के पहले ही, मन ही मन सिर पहले झुका. क्यों?
वियतनाम क्या है?
पूरा नाम है, ‘सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ वियतनाम, क्षेत्रफल या भौगोलिक आकार, भारत के राजस्थान राज्य से 10,000 वर्ग किमी छोटा. जनसंख्या की दृष्टि से बिहार के बराबर लगभग8.70 करोड़. पर शायद अकेला देश, जिसने दुनिया के तीन बड़े देशों नहीं महादेशों को शिकस्त दी. चीन, फ्रांस और अमेरिका को. अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार एक मित्र कहते हैं,‘वैरियर रेस ऑफ ऐशया‘ (ऐशया की लड़ाकू जाति). ईसा शताब्दी से 111 वर्ष पहले चीन के हानवंश ने वियतनाम पर कब्जा कर लिया. यह कब्जा 938 इस्वी तक रहा. पर 1000 वर्षो के इस कब्जे में चीन, चैन से नहीं रहा. अनेक विद्रोह, लगातार युद्ध, चीन को हटना पड़ा. फिर फ्रांस आया.
19 वीं सदी में. हो ची मिन्ह का संघर्ष शु हुआ. दो सितंबर‘45 को हो ची मिन्ह ने‘डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ वियतनाम‘ की घोषणा कर दी. फ्रांस, आजादी देने को तैयार नहीं था. 1954 मई में वियतनाम ने फ्रांस को बाहर कर दिया. ‘60 के दशक में अमेरिका कूदा. 55हजार अमेरिकी सैनिक मारे गये. अमेरिका को भागना पड़ा. फिर ‘77-78 में चीन ने आक्रमण किया. तीन महीने में ही 30,000 चीनी सैनिक मारे गये. चीन को भी भागना पड़ा.
इस तरह दुनिया की तीन बड़ी ताकतों को शिकस्त देनेवाला मुल्क है, वियतनाम. इसलिए इस मिट्टी पर पांव पड़ने के पहले सिर झुका.मानव मर्यादा, स्वाभिमान और आजादी का पूजक देश. |
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