पप्पू मत बनिए, रात ग्यारह बजे के बाद टीवी देखिए
20 NOVEMBER 2010 ONE COMMENT
♦ विनीत कुमार
हालांकि यह प्रतिक्रिया विनीत ने उसी दिन लिखी थी, जिस दिन आईबी मिनिस्ट्री का नोटिफिकेशन आया था। कुछ तकनीकी दिक्कतों के चलते मोहल्ला लाइव अपडेट करने में दिक्कतें आ रही थीं। कुछ दूर हुई हैं, कुछ को दूर करने की कोशिश चल रही है। बहरहाल, टीवी पर रियलिटी शोज़ में अश्लील शरारतों को भारतीय जागरण अवधि में छिपाने की आईबी मिनिस्ट्री के निर्देश में छिपी चतुराई को समझने की कोशिश विनीत ने की है। दो दिनों बाद हालांकि एक शो बिग बॉस की टाइमिंग बहाल रहने दी गयी – लेकिन यह लेख चूंकि दो दिन पहले नोटिफिकेशन के तुरत बाद लिखा गया – लिहाजा इसमें उसका जिक्र उसी तरह से है :मॉडरेटर
लीजिए, देश के सूचना और प्रसारण मंत्रालय (IB ministry) ने हमें गर्व करने का एक और मौका दे दिया। गर्व कीजिए मंत्रालय के इस फैसले पर कि अब राखी का इंसाफ और बिग बॉस जैसे टेलीविजन शो देर रात 11 बजे के बाद प्रसारित होंगे। बकरीद के मौके पर मंत्रालय ने इन दोनों कार्यक्रमों को अश्लीलता का आरोप लगने की वजह से बच्चों के लिए नुकसान पहुंचानेवाला करार दिया और इसकी टाइमिंग देर रात से सुबह पांच बजे तक करने की बात कही। साथ में यह भी कहा कि शो शुरू करने से पहले चैनल यह भी प्रसारित करे कि इसमें कुछ ऐसी चीजें होंगी, जो बच्चों के लिए सही नहीं होगी और बच्चों को इसे न देखने दिया जाए। मंत्रालय के इस फैसले का न्यूज चैनलों ने नगाड़े पीट-पीटकर स्वागत किया और रियलिटी शो पर सरकारी चाबुक, गिरी गाज जैसे सुपर लगाकर प्राइम टाइम में खबरें चलायी गयीं। हां इन कार्यक्रमों की फुटेज किसी भी न्यूज चैनल पर नहीं दिखायी जानी चाहिए वाली बात या तो पचा गये या फिर हवा में उड़ते-उड़ाते बतायी। ये वही चैनल हैं, जो मनोरंजन चैनलों की गतिविधियों को आधार बनाकर रोज दो स्पेशल शो चलाते हैं और आये दिन रियलिटी शो को लेकर स्पेशल प्रोग्राम या स्टोरी बनाते हैं। न्यूज चैनलों को मंत्रालय के इस फैसले से कुछ फर्क नहीं पड़नेवाला है। बस इतना होगा कि आइटम की तलाश दूसरे कार्यक्रमों, यूट्यूब की खानों या फिर फिल्मों में जाकर करेंगे और इसकी शुरुआत आजतक और स्टार ने शीला की जवानी दिखाकर कर दी।
इस फैसले को समाजशास्त्रियों और मीडिया मामले के जानकारों से भी समर्थन मिल रहे हैं। लेकिन इससे पहले कि मंत्रालय के इस फैसले से हमारा कलेजा फुलकर बड़ा पाव हो जाए कि वो इस देश की संस्कृति, ऑडिएंस, चेतना और नागरिक इच्छा का कितना ख्याल रखता है – जरूरी है कि इस फैसले के पीछे की समझ को विश्लेषित करने की कोशिश करें। टेलीविजन पर इस फैसले को लेकर जब खबरें चल रही थीं तो मेरे दिमाग में पहली बात आयी कि कहीं ये आनेवाले समय में पोर्नोग्राफी चैनल या प्लेबॉय जैसे कार्यक्रम के लिए जमीन तैयार करने की मंत्रालय की जनवादी कोशिश तो नहीं है। इस सवाल के साथ ही कई दूसरे सवाल एक-दूसरे से जुड़ते चले गये और तब समझ में आया कि ऐसा करके मिनिस्ट्री न तो किस तरह की अश्लीलता को कम करने की दिशा में कुछ कर रही है और न ही वो टेलीविजन और दूसरे माध्यमों से बननेवाली संस्कृति को लेकर कोई गंभीर सोच रखती है। उल्टे एक बार फिर साबित हो गया कि ये पहले की तरह ब्यूरोक्रेटिक निकम्मेपन की शिकार मिनस्ट्री है।
पहली बात तो ये कि मिनिस्ट्री विवादित और अश्लीलता की चपेट में आनेवाले कार्यक्रमों को देर रात प्रसारित करने की बात करती है, वह व्यावहारिक तौर पर एक नयी टेलीविजन संस्कृति को जन्म देती है। वह एक तरह से प्राइम टाइम को रबड़ की तरह खींचकर 12 बजे तक ले जाना चाहती है। ऐसा करने से निजी चैनलों का धंधा पहले से और चमकेगा। जो ऑडिएंस प्रोग्राम को 9 या 10 बजे देख सकती है, वो 11-12 बजे देखेगी। ऐसी आदर्श स्थिति कभी नहीं आएगी कि लोग 11 बजे के बाद टेलीविजन बंद कर देंगे। बच्चों के स्कूल के दबाव और ऑफिस पहुंचने में देरी होने की वजह से अगर ऐसा करते भी हैं, तो भी प्राइम टाइम खिंचकर लंबा तो चला ही गया। ऑडिएंस प्रभाव के लिहाज से देखें, तो ऐसा करके मिनिस्ट्री देर रात टेलीविजन देखने की संस्कृति को बढ़ावा दे रही है और फिर एक-एक करके सारे चैनल इसी समय अधो-अश्लील (partial-porno) कार्यक्रम दिखाया करेंगे। ऑडिएंस की टेलीविजन देखने की टाइमिंग शिफ्ट आगे बढ़ जाएगी। दूरदर्शन के कार्यक्रमों और निजी चैनलों के आने के दौरान टाइमिंग की पॉलिटिक्स को हमने बेहतर तरीके से समझा है।
इस फैसले के पहले मिनिस्ट्री ने सच का सामना शो के साथ यही दलीलें दी थीं और इसका समय देर रात कर दिया। बाद में ये शो बंद हो गया, जिसे कि मिनिस्ट्री अपना क्रेडिट मानकर एक फार्मूला गढ़ रही है कि किसी प्रोग्राम की व्यूअरशिप तोड़ने का बेहतर तरीका है कि देर रात ढकेल दो। ऐसा करके वह सरोगेट तौर पर पोर्नोग्राफी चैनल की जमीन तैयार कर रही है। साथ ही इससे इस बात का भी बढ़ावा मिलेगा कि ऐसे कार्यक्रम बनाने में कोई दिक्कत नहीं है, बस समझदारी इतनी रखो कि इसे 11 बजे के बाद प्रसारित करो। कल को टेलीविजन टाइमिंग को लेकर विज्ञापन बन जाएंगे – पप्पू मत बनिए, 11 बजे के बाद टीवी देखिए। चैनलों को इस टाइमिंग में ढलते देर नहीं लगेगी। कभी इंडिया टीवी ने सेक्स जागरुकता के नाम पर देर रात सेक्स से जुड़े सवालों पर अधारित कार्यक्रम शुरू किया था, जिसमें सरस सलिल चिंतन को जमकर विस्तार दिया गया, वो तो कभी टीआरपी की मार से पस्त नहीं हुआ। अगर टाइमिंग ही बदलनी है तो 11 बजे रात के बाद क्यों, दिन में कर दें। बच्चों से ही डर है न, वो तो स्कूल में होंगे और जो बच्चे स्कूल जाने की हैसियत नहीं रखते, वो भला क्या टीवी देखते होंगे? लेकिन नहीं, मिनिस्ट्री बहते नाले को बेहतर सीवर बनाने की जगह उस पर तख्ती लगाकर फैसलेनुमा फूलदान डालने का काम कर रही है।
मिनस्ट्री का ये फैसला साफ कर देता है कि उसके भीतर कैसे निकम्मेपन की संस्कृति काबिज है? क्या बिग बॉस पहली बार शुरू हुआ है या राखी का इंसाफ जैसे कार्यक्रम पहली बार आये हैं? सरकार और मिनस्ट्री हादसे और दुर्घटना के बाद ही निर्देश तैयार करने की अभ्यस्त क्यों है? क्या इन कार्यक्रमों के महीने भर से पहले जारी प्रोमो को मिनिस्ट्री के लोग नहीं देखते और उससे कुछ समझ नहीं आता कि ये कैसा कार्यक्रम है? इसके साथ ही बच्चों का हवाला देकर वो जिस तरह वो बार-बार फैसले सुनाती आयी है, उससे साफ हो जाता है कि उसने कभी भी ऑडिएंस-व्यवहार पर (consumer- behaviour की तरह) रिसर्च नहीं करवाया। वो आदिम जमाने की तरह आज भी मानकर चल रही है कि टेलीविजन का रिमोट घर के सबसे बुजुर्ग के हाथ में होता है और वही तय करते हैं कि क्या देखा जाएगा? ऑडिएंस-व्यवहार पर सबसे मौलिक काम डेविड मोर्ले (टेलीविजन ऑडिएंस एंड कल्चरल स्टडीज, राउटलेज प्रकाशन) ने किया है और फ्रॉम फैमिली टेलीविजन टू ए सोशियोलॉजी ऑफ मीडिया कनजंपशन अध्याय में ये सवाल उठाया है कि कैसे टेलीविजन एक सामाजिक विकास के माध्यम से मनोरंजन और फिर उपभोक्ता मिजाज की तरफ शिफ्ट कर जाता है। इसके साथ ही रिमोट पर किसका कंट्रोल है, टेलीविजन के जरिये संस्कृति का विस्तार इससे निर्धारित होता है। मिनिस्ट्री ने बेसिक बात ये मान ली है कि रिमोट पर बुजुर्ग और खासतौर से अगर सामाजिक संरचना पर गौर करें तो पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों का अधिकार होता है। अब ये समझ कितनी बचकानी है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि पिछले पांच साल में कार्टून चैनलों, मनोरंजन चैनलों, सोप ओपेरा और इससे संबंधित कार्यक्रमों का कितना विस्तार हुआ है, न्यूज चैनलों में इसकी कवरेज में कितना इजाफा हुआ है? दरअसल मिनिस्ट्री यहां पर आकर अपनी आदिम ऑडिएंस की समझ को आज थोपने की फिराक में है जबकि सामाजिक सत्ता के बहुत अधिक नहीं बदलने के बावजूद टेलीविजन और रिमोट पर की सत्ता उस मुकाबले तेजी से बदली है और उसमें बच्चों की दावेदारी मजबूत हुई है। उन आंकड़ों के साथ अगर मिनिस्ट्री काम करना शुरू करती है, तो उसे अपने इस तरह के फैसले बंडलबाजी से ज्यादा कुछ नहीं लगेंगे।
तेजी से बदलती माध्यम संस्कृति के बीच टेलीविजन अब कोई स्वतंत्र माध्यम नहीं रह गया है कि अगर आपने उसके साथ छेड़छाड़ और बदले की कोशिश की तो वो उसी तरह से बदल गया। अब पूरा मीडिया एक एसेम्बल्ड संस्कृति में काम करता है। रेडियो की कमी मोबाइल पूरी करता है,टेलीविजन की कमी मोबाइल और इंटरनेट। इसलिए बिग बॉस टीवी पर न सही, कलर्स की ऑफिशियल साइट इन डॉट कॉम पर देखा जा सकता है, बिग 92.7 पर सुना जा सकता है और लगातार बीप से एक अश्लील इमेज मन में पैदा किए जा सकते हैं। मिनिस्ट्री इस एसेम्बल्ड मीडिया संस्कृति के बीच से अश्लीलता को कैसे कम करने जा रहा है,असल सवाल यहां पर है। क्या वह अखबारों के पहले पर पमेला एन्डरसन की अधखुली छाती के साथ बिग बॉस के विज्ञापन को रोक देगी? अखबार कैसा करने दे देगा? आज जबकि सीरियल और रियलिटी शो के ह खास मौके के साथ नए प्रोमो बनाए जाते हैं,जिसकी प्राथमिकता में उस अश्लीलता को ही शामिल करना होता है,मिनिस्ट्री उसे लेकर क्या कर लेगी? कल रात आजतक और स्टार न्यूज ने आइटम बम कैटरीना, सबसे बोल्ड कैटरीना के नाम पर तीस मार खां और उसके आइटम गाना शीला की जवानी को पूरा-पूरा मिनटों तक दिखाता रहा। साथ में ये भी बताया कि अबतक की सबसे बोल्ड दिखी कैटरीना और वो भी सिर्फ एक चादर लपेटे। ये प्राइम टाइम की खबरें हैं जो कि इन्टरटेन्मेंट की पैकेज में आए,अभी तो रात बाकी ही है अंदाज में।
मतलब साफ है कि अगर अश्लीलता को रोकने के लिए मिनिस्ट्री दोनों कार्यक्रमों के प्रसारण की टाइमिंग बढ़ा रही है तो फिर ऐसे कार्यक्रमों की फुटेज काट-काटकर पूरा पैकेज चलानेवाले चैनलों पर भी कुछ विचार कर रही है या नहीं? बिग बॉस सीजन फोर या राखी का इंसाफ कोई अकेला कार्यक्रम है नहीं, चैनल के पास तो सैंकड़ों विकल्प हैं। चैनल तो इन्हें फिर भी दिनभर दिखाएंगे और तब भी बच्चे होमवर्क कर रहे होंगे और तथाकथित आदर्श ऑडिएंस माता-पिता खबरिया चैनल देख रहे होंगे – शीला की जवानी, पामेला एंडरसन की हिस्स-हिस्स पर उनकी आंखें तब भी तो ठिठकेगी। न्यूज चैनल इस फैसले पर जो नगाड़े पीटने का काम कर रहे हैं, उन्हें पता है कि उनका कोई नुकसान होने से रहा। लेकिन अगर मिनिस्ट्री अश्लीलता को लेकर बात करना चाहती है तो उसे न्यूज चैनलों को भी इसके दायरे में रखना होगा। फिलहाल जो स्थिति बनी है, उसे देखते हुए एक माहौल तैयार किया जा रहा है कि टेलीविजन पर अश्लीलता बढ़ रही है, इसे देर रात तक ले जाओ और फिर देर रात के अलग से चैनल हो जाएंगे, जिसका एक दरवाजा पोर्नोग्राफी की तरफ खुलेगा। दिक्कत सिर्फ पोर्नोग्राफी के आने से नहीं है। मिनिस्ट्री जैसे ही किसी भी कार्यक्रम को बच्चों के लिए नहीं, बड़ों के लिए करार देती है तो एक तरह से उसे एडल्ट की ग्रेडिंग देती है। अब सवाल है कि एडल्ट और पोर्नोग्राफी के बीच क्या कोई विभाजन रेखा है? अगर नहीं तो फिर क्या चैनल इन कार्यक्रमों के लिए अलग से लाइसेंस ले और फिर उन कार्यक्रमों के लिए अलग से लाइसेंस फीस दे जो कि सामान्य कार्यक्रमों से अलग होंगे।
मिनिस्ट्री इस मामले को सिर्फ एथिक्स और मुलायम निर्देशों के साथ डील करना चाहती है जबकि चैनल इस बात के संकेत देने लग गये हैं कि जल्दी आपकी सेवा में पोर्नोग्राफी हाजिर किये जाएंगे। ये मामला सांस्कृतिक के साथ-साथ बड़े स्तर पर इकॉनमी का हिस्सा है और इस पर उस स्तर से काम करने की जरूरत है। नहीं तो अभी हम जिसे महज नैतिकता की बहस मान रहें हैं, उस नैतिकता की टाट पर पोर्नोग्राफी की एक बड़ी इंडस्ट्री खड़ी होने जा रही है और उसके भीतर परनाले बहने के रास्ते भी तैयार होने जा रहे हैं।
(विनीत कुमार। युवा और तीक्ष्ण मीडिया विश्लेषक। ओजस्वी वक्ता। दिल्ली विश्वविद्यालय से शोध। मशहूर ब्लॉग राइटर। कई राष्ट्रीय सेमिनारों में हिस्सेदारी, राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन। हुंकार औरटीवी प्लस नाम के दो ब्लॉग। उनसे vineetdu@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
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साभार-मोहल्ला live
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