रंग-बिरंगा पर्जातंतर, शिबू सोरेन, सुरेश कलमाड़ी, ए राजा , नीरा रादिया बाहर और विनायक सेन अन्दर .....अब तो खोल से बाहर निकलो मेरे सुर में सुर मिलाओ .....न्यायपालिका मुर्दाबाद
रंग-बिरंगा पर्जातंतर, शिबू सोरेन, सुरेश कलमाड़ी, ए राजा , नीरा रादिया बाहर और विनायक सेन अन्दर .....अब तो खोल से बाहर निकलो मेरे सुर में सुर मिलाओ .....न्यायपालिका मुर्दाबाद
छत्तीसगढ़ की शहरी आबादी भले ज़्यादा न जानती रही हो लेकिन वहाँ के दूरस्थ इलाक़ों के गाँव वाले और आदिवासी उन्हें अपने हितचिंतक के रुप में जानते रहे हैं.
पेशे से चिकित्सक डॉ बिनायक सेन छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि लेते रहे हैं.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को उनके कॉलेज क्रिस्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर ने भी सराहा और पॉल हैरिसन अवॉर्ड दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जोनाथन मैन सम्मान दिया गया.डॉ बिनायक सेन मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ शाखा के उपाध्यक्ष भी रहे हैं.इस संस्था के साथ काम करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौत और कुपोषण जैसे मुद्दों को उठाया और कई ग़ैर सरकारी जाँच दलों के सदस्य रहे.उन्होंने छत्तीसगढ़ में समाजसेवा की शुरुआत सुपरिचित श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ की और श्रमिकों के लिए बनाए गए शहीद अस्पताल में अपनी सेवाएँ देने लगे.इसके बाद वे छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों में लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के उपाय तलाश करने के लिए काम करते रहे.
डॉ बिनायक सेन सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बनी छत्तीसगढ़ सरकार की एक सलाहकार समिति के सदस्य रहे और उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि डॉ सेन के सुझावों के आधार पर सरकार ने ‘मितानिन’ नाम से एक कार्यक्रम शुरु किया.इस कार्यक्रम के तहत छत्तीसगढ़ में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार की जा रहीं हैं.
दुनिया भर के 22 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने भी डॉ बिनायक सेन की रिहाई की अपील की थी.नोबेल पुरस्कार विजेता चाहते थे कि उन्हें जोनाथन मैन सम्मान लेने के लिए अमरीका जाने की अनुमति दी जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका.डॉ बिनायक सेन की पत्नी डॉ इलीना सेन भी जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और वे डॉ सेन को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करती रही हैं
छत्तीसगढ़ की शहरी आबादी भले ज़्यादा न जानती रही हो लेकिन वहाँ के दूरस्थ इलाक़ों के गाँव वाले और आदिवासी उन्हें अपने हितचिंतक के रुप में जानते रहे हैं.
पेशे से चिकित्सक डॉ बिनायक सेन छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि लेते रहे हैं.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को उनके कॉलेज क्रिस्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर ने भी सराहा और पॉल हैरिसन अवॉर्ड दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जोनाथन मैन सम्मान दिया गया.डॉ बिनायक सेन मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ शाखा के उपाध्यक्ष भी रहे हैं.इस संस्था के साथ काम करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौत और कुपोषण जैसे मुद्दों को उठाया और कई ग़ैर सरकारी जाँच दलों के सदस्य रहे.उन्होंने छत्तीसगढ़ में समाजसेवा की शुरुआत सुपरिचित श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ की और श्रमिकों के लिए बनाए गए शहीद अस्पताल में अपनी सेवाएँ देने लगे.इसके बाद वे छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों में लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के उपाय तलाश करने के लिए काम करते रहे.
डॉ बिनायक सेन सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बनी छत्तीसगढ़ सरकार की एक सलाहकार समिति के सदस्य रहे और उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि डॉ सेन के सुझावों के आधार पर सरकार ने ‘मितानिन’ नाम से एक कार्यक्रम शुरु किया.इस कार्यक्रम के तहत छत्तीसगढ़ में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार की जा रहीं हैं.
दुनिया भर के 22 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने भी डॉ बिनायक सेन की रिहाई की अपील की थी.नोबेल पुरस्कार विजेता चाहते थे कि उन्हें जोनाथन मैन सम्मान लेने के लिए अमरीका जाने की अनुमति दी जाए लेकिन ऐसा नहीं हो सका.डॉ बिनायक सेन की पत्नी डॉ इलीना सेन भी जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और वे डॉ सेन को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करती रही हैं
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