कई चहेरों के अन्दर होता है असली चेहरा


कई चहेरों के अन्दर होता है असली चेहरा

Jan 13, 10:30 pm
 आलय ने भागलपुर की सांस्कृतिक निरंतरता को जारी रखते हुए एक और नाटक की प्रस्तुति से लोगों का मन मोह लिया.  गुरूवार को कला केन्द्र में नाट्य संस्था आलय के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नाटक 'चेहरे पे चेहरा' ने एक बार फिर से इस सच को उभार दिया। कलाकार विक्रम ने बताया कि हर इंसान का बचपन एक कच्ची माटी के घड़े समान होता है। शनै: शनै: इंसान अपने वास्तविक चेहरे पर कई नकली चेहरे लगाकर दुनिया की आखों में धूल झोंकने लगता है। सूरज ने कहा कि नाटक में कलाकारों ने चेहरे पर मुखौटा लगाकर इसी सच्चाई को दर्शाने की कोशिश की। प्रियंका कहती है कि दुनिया को धोखा देते हुए इंसान खुद को भी धोखा देने लगता है। नाटक में एक राजा की भूमिका निभा रहे कलाकार रितेश ने कहा कि इंसान भले ही बलवान क्यों न हो, बुराई नामक दुश्मन उस पर आसानी से हावी हो जाती है। यह उस नकली चेहरे की बदौलत होता है। अतुल जोड़ते हैं कि इंसान अगर अपने असली चेहरे को न छोडे़ तो पथभ्रष्ट होने की संभावना कम रह जाती है। सज्जन कहते हैं कि बुराई के हावी होते ही इंसान स्वार्थी हो जाता है। श्रेय बताते हैं कि बुराई के हावी होते ही इंसान का पतन निश्चित हो जाता है। संजीव कहते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इंसान द्वारा अपनाया गया नकली चेहरा उसकी असली पहचान बनकर रह जाता है। कोमल कहती है कि नकली आवरण अपनाने से एक दिन इंसान अपनी वास्तविकता भूल जाता है। नाटक के निर्देशक कुमार चैतन्य प्रकाश कहते हैं कि जब किसी की प्रेरणा से इंसान अपने नकली आवरण को हटाकर वास्तविक रूप में आता है तो उसके लिए खुद को पहचानना आसान हो जाता है। वो पहले की अपेक्षा ज्यादा सुदृढ़ हो जाता है। उसमें हर बुराईयों से लड़ने की ताकत आ जाती है। मूक नाटक का निर्देशन चैतन्य ने किया। वहीं स्वर संगम कला निकेतन के शैलेश कुमार, सिल्टू सिन्हा व ऋषि मिश्रा के संगीत ने जीवंत कर दिया

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