रे धूर्त चपटी तुम्हारा चन्दन का टीका मेरी मेहनत से ज्यादा उपयोगी नहीं , मुझे पता है तुम्हारे जनेऊ में मरी हुई जुओं की गंध आती है जिनमे जीवन का नहीं मौत का भय दिखता है , मेरे देह का पसीना और गंध तुम्हारे सड़े हुए जनेऊ से लाख गुना बहतर है , आओ , मेरे पसीने से अपने बदन को रगडो और महसूस करो कि बू की कोई भाषा नहीं होती और गंध का कोई वजूद नहीं होता .......रवि विद्रोही ...

रे धूर्त चपटी
तुम्हारा चन्दन का टीका
मेरी मेहनत से ज्यादा
उपयोगी नहीं ,
मुझे पता है
तुम्हारे जनेऊ में
मरी हुई जुओं की
गंध आती है
जिनमे जीवन का नहीं
मौत का भय दिखता है ,
मेरे देह का पसीना
और गंध
तुम्हारे सड़े हुए जनेऊ से
लाख गुना बहतर है ,
आओ , मेरे पसीने से
अपने बदन को रगडो
और महसूस करो
कि बू की कोई भाषा नहीं होती
और गंध का कोई वजूद नहीं होता .......रवि विद्रोही ...

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