मंदिर की घंटियाँ शंख की गूँज मन्त्रों की बुदबुदाहट तहस-नहस कर देता है मेरे अस्तित्व को बेचैन हो जाता हूँ मैं जब मेरे नथुनों में घुसता है हवन का धुआं शूल सा चुभता है शंकर का त्रिशूल विष्णु का चक्र सदियों से काट रहा है मेरा गला मंदिर में जलती अगरबत्त्तियों की सुगंध मुझे पसंद नहीं है क्योंकि मैंने पैखाने की दुर्गन्ध को आत्मसात कर लिया है मेरी जीभ को नहीं भाता देवताओं को चढ़ाये प्रसाद क्यूंकि मेरी जीभ पर चढ़ गया है सर पर रखी मैले की टोकरी से चूते मैले का स्वाद..

 मंदिर की घंटियाँ
शंख की गूँज
मन्त्रों की बुदबुदाहट 
तहस-नहस कर देता है
मेरे अस्तित्व को 
बेचैन हो जाता हूँ मैं
जब मेरे नथुनों में 
घुसता है
हवन का धुआं 
शूल सा चुभता है
शंकर का त्रिशूल
विष्णु  का चक्र 
सदियों से 
काट रहा है
मेरा गला
मंदिर में जलती
अगरबत्त्तियों की सुगंध
मुझे पसंद नहीं है
क्योंकि 
मैंने पैखाने की दुर्गन्ध को
आत्मसात कर लिया है
मेरी जीभ को नहीं भाता 
देवताओं को चढ़ाये प्रसाद 
क्यूंकि मेरी जीभ पर 
चढ़ गया है
सर पर रखी मैले की टोकरी 
से चूते  मैले का स्वाद..

-ओम सुधा 





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