रंगमंच कभी मरता नहीं. पर यदि आपको इस कहावत की सार्थकता पर कोई संदेह है तो किसी कस्बाई शहर के रंगकर्मियों की हालत को नजदीकी से समझना होगा. फिलवक्त, मैं बात कर रहा हूँ भागलपुर के रंगकर्मियों की. ..मौलिक सुविधाओं की कमी, प्रशासन की बेरुखी, पैसों की कमी और अदद रंगमंच को तरसते ! एक मामले में भागलपुर के रंगकर्मी बहुत ही खुशनसीब हैं की यहाँ दर्शकों का टोटा कभी नहीं होता . यहाँ के रंगकर्मियों की जीवटता देखकर आप चौक सकते हैं बांस -बल्ला गाड़ने से लेकर दर्शकों को न्योता देने तक सारा काम ये अपने रिहर्सल से वक़्त बचाकर . अलबत्ता इन्ही व्यवस्थाओं की फसल यहाँ के बच्चे पुए देश में अपने शहर को पहचान दिला रहे हैं. ऐसा नहीं है की सर्कार ने कुछ किया नहीं है कला संस्कृति के समुचित विकास के लिए एक डिब्बे जैसा हॉल "अंग सांस्कृतिक केंद्र " बना दिया है. तकनिकी खामियों की वजह से ये कलाकारों के काम तो नहीं आता पर सरकार चुनाव आदि के मौके पर चुनावकर्मियों को इसे देकर तो कभी मतपेटियां रखकर कला के प्रति अपनी गहन संवेदना प्रदर्शित करती रहती है. ऐसा नहीं है की सांस्कृतिक कार्यक्रमों से प्रशासन को कोई परहेज है. "" सेक्सी बेबी ऑन द फ्लोर "" जैसे गानों पर समय समय पर नाच-गाना करवाकर सरकार अपने सांस्कृतिक प्रेम को ज़ाहिर करती रहती है. ऐसा नहीं है की रंगकर्मी इसका प्रतिरोध नहीं करते , ये अलग बात है की प्रशासन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता . आप ये जानकार चौक जायेंगे की इस छोटे से शहर में कई सांस्कृतिक संस्थाएं हैं और इस शहर ने कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाएं दी है. मज़े की बात ये है की तमाम असुविधाओं के बावजूद यहाँ के रंगकर्मी पूरी शिद्दत से रंगकर्म की मशाल थामे हुए आगे बढ़ रहे हैं. कभी आप इस शहर के हृदयस्थली सैंडिस कम्पौंड में शाम के वक़्त टालते हुए पहुच जाएँ तो आपको कुछ बच्चे सर्वेश्वर दयाल या बदल सरकार के नाटकों की संवाद अदायगी करते हुए मिल जायेंगे. सचमुच अद्भुत जीवटता सिखा देता है रंगमंच. तभी तो कहते हैं की रंगमंच कभी मरता नहीं !!!

रंगमंच कभी मरता नहीं. पर यदि आपको इस कहावत की सार्थकता पर कोई संदेह है तो किसी कस्बाई शहर के रंगकर्मियों की हालत को नजदीकी से समझना होगा. फिलवक्त, मैं बात कर रहा हूँ भागलपुर के रंगकर्मियों की. ..मौलिक सुविधाओं की कमी, प्रशासन की बेरुखी, पैसों की कमी और अदद रंगमंच को तरसते ! एक मामले में भागलपुर के रंगकर्मी बहुत ही खुशनसीब हैं की यहाँ दर्शकों का टोटा कभी नहीं होता . यहाँ के रंगकर्मियों की जीवटता देखकर आप चौक सकते हैं बांस -बल्ला गाड़ने से लेकर दर्शकों को न्योता देने तक सारा काम ये अपने रिहर्सल से वक़्त बचाकर . अलबत्ता  इन्ही  व्यवस्थाओं  की फसल यहाँ के बच्चे पुए देश में अपने शहर को पहचान दिला रहे हैं. ऐसा नहीं है की सर्कार ने कुछ किया नहीं है कला संस्कृति के समुचित विकास के लिए एक डिब्बे जैसा हॉल "अंग सांस्कृतिक केंद्र " बना दिया है. तकनिकी खामियों की वजह से ये कलाकारों के काम तो नहीं आता पर सरकार चुनाव आदि के मौके पर  चुनावकर्मियों को इसे देकर तो कभी मतपेटियां रखकर कला के प्रति अपनी गहन संवेदना प्रदर्शित करती रहती है. ऐसा नहीं है की सांस्कृतिक कार्यक्रमों से प्रशासन को कोई परहेज है. "" सेक्सी  बेबी ऑन द फ्लोर  "" जैसे गानों पर समय समय पर नाच-गाना करवाकर सरकार अपने सांस्कृतिक प्रेम को ज़ाहिर करती रहती है. ऐसा नहीं है की रंगकर्मी इसका प्रतिरोध नहीं करते , ये अलग बात है की प्रशासन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता . आप ये जानकार चौक जायेंगे की इस छोटे से शहर में कई सांस्कृतिक संस्थाएं हैं और इस शहर ने कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभाएं दी है. मज़े की बात ये है की तमाम असुविधाओं के बावजूद यहाँ के रंगकर्मी पूरी शिद्दत से रंगकर्म की मशाल थामे हुए आगे बढ़ रहे हैं. कभी आप इस शहर के हृदयस्थली सैंडिस कम्पौंड में शाम के वक़्त टालते हुए पहुच जाएँ तो आपको कुछ बच्चे सर्वेश्वर दयाल या बदल सरकार के नाटकों की संवाद अदायगी करते हुए मिल जायेंगे. सचमुच अद्भुत जीवटता सिखा देता है रंगमंच. तभी तो कहते हैं की रंगमंच कभी मरता नहीं !!!

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