वर्तमान पीढ़ी के साहित्यकारों में रंजन बहुत चर्चित तो नहीं, पर एक महत्वपूर्ण नाम है. अपने पहले कहानी संग्रह "चेहरे" और उपन्यास " अगिनदेहा " से अपनी सरल और उत्कृष्ट भाषा-शैली की छाप छोने वाले रंजन, साहित्य-जगत में एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाने के लिए भी जाने जाते हैं,पेशे से फोटोग्राफर और मिजाज़ से रंगकर्मी, नाटकों में प्रकाश की बारीकियों से बास्ता रखते हैं, उनके पात्रों की खासियत है की लिखने के लिए कलम और लारने के लिए तलवार उनके कहानी, उपन्यास के पात्रों की हाथों में खुद ब खुद आ जाते हैं. उम्र का साथ साल गुजार चुके इस शख्स को शायद ही किसी ने उनकी चमकीली टाई के बिना देखा हो, इस यारबाज़ लेखक को साहित्यकारों की चौकरी से ईन्धन मिलता है.जब आप इनसे मिलते हैं तो काफी पुराना परिचय होने का एहसास होता है.वैसे भी परम्पराओं को निभाना आसन नहीं होता, वो भी तब, जब पिता हरिकुंज की विरासत हो...व्यापार, परिवार और साहित्य को सामान रूप से साधने वाले...आप इनसे चिकित्सा विज्ञान से लेकर योग, तंत्र-साधना, अर्थशास्त्र , शेयर मार्केट और न जाने क्या क्या....यही अनुभव स्याही बनकर शब्द-शिशु का रूप धर कलरव करते हैं, तो कल्पनालोक भी आभासी हकीक़त की दुनिया में तब्दील हो जाता है.....ऐसे ही हैं रंजन और उनका रचना-संसार .... दोस्तों पर जान लुटाने वाले, शरीफ, इमानदार, जिंदादिल.....पर.....थोडा खब्ती. रंजन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक पुस्तक निकलने का फितूर मेरी खोपड़ी में आया है.. जो लोग रंजन को जानते हैं उनकी रचनाओं का स्वागत है

वर्तमान पीढ़ी के साहित्यकारों में रंजन बहुत  चर्चित तो नहीं, पर एक महत्वपूर्ण नाम है. अपने पहले कहानी संग्रह "चेहरे" और उपन्यास " अगिनदेहा "  से अपनी सरल और उत्कृष्ट भाषा-शैली की छाप छोने वाले रंजन, साहित्य-जगत में एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाने के लिए भी जाने जाते हैं,पेशे से फोटोग्राफर और मिजाज़ से रंगकर्मी, नाटकों में प्रकाश की बारीकियों से बास्ता रखते हैं, उनके पात्रों की खासियत है की लिखने के लिए कलम और लारने के लिए तलवार उनके कहानी, उपन्यास के पात्रों की हाथों में खुद ब खुद आ जाते हैं. उम्र का साथ साल गुजार चुके इस शख्स को शायद ही किसी ने उनकी चमकीली टाई के बिना देखा हो, इस यारबाज़ लेखक को साहित्यकारों की चौकरी से ईन्धन मिलता है.जब आप इनसे मिलते हैं तो काफी पुराना परिचय होने का एहसास होता है.वैसे भी परम्पराओं को निभाना आसन नहीं होता, वो भी तब, जब पिता हरिकुंज की विरासत हो...व्यापार, परिवार और साहित्य को सामान रूप से साधने वाले...आप इनसे चिकित्सा विज्ञान से लेकर योग, तंत्र-साधना, अर्थशास्त्र , शेयर मार्केट और न जाने क्या क्या....यही अनुभव स्याही बनकर शब्द-शिशु का रूप धर कलरव करते हैं, तो कल्पनालोक भी आभासी हकीक़त की दुनिया में तब्दील हो जाता है.....ऐसे ही हैं रंजन और उनका रचना-संसार .... दोस्तों पर जान लुटाने वाले, शरीफ, इमानदार, जिंदादिल.....पर.....थोडा  खब्ती.
रंजन के व्यक्तित्व  और कृतित्व पर एक पुस्तक निकलने का फितूर मेरी खोपड़ी में आया है.. जो लोग रंजन को जानते हैं उनकी रचनाओं का स्वागत है 

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