कौन बेशर्म कहता है कि ये धर्मग्रंथ हैँ ?

कौन बेशर्म कहता है कि ये धर्मग्रंथ हैँ ?

by Nilakshi Singh on Thursday, September 29, 2011 at 10:52am
ब्रह्मवैवर्त पुराण में मोहिनी नामक वेश्या का आख्यान है जो ब्रह्मा से संभोग की याचना करती है और ठुकराए जाने पर उन्हें धिक्कारते हुए कहती है, ‘‘उत्तम पुरुष वह है जो बिना कहे ही, नारी की इच्छा जान, उसे खींचकर संभोग कर ले. मध्यम पुरुष वह है जो नारी के कहने पर संभोग करे और जो बार-बार कामातुर नारी के उकसाने पर भी संभोग नहीं करे, वह पुरुष नहीं, नपुंसक है.
(खट्टर काका, पृ. 188, सं. छठाँ)
इतना कहने पर भी जब ब्रह्मा उत्तेजित नहीं हुए तो मोहिनी ने उन्हें अपूज्य होने का शाप दे दिया. शाप से घबराए हुए ब्रह्मा जब विष्णु भगवान से फ़रियाद करने पहुँचे तो उन्होंने डाँटते हुए नसीहत दिया, ‘‘यदि संयोगवश कोई कामातुर एकांत में आकर स्वयं उपस्थित हो जाए तो उसे कभी नहीं छोड़ना चाहिए. जो कामार्त्ता स्त्री का ऐसा अपमान करता है, वह निश्चय ही अपराधी है. (खट्टर काका, पृष्ठ 189) लक्ष्मी भी बरस पड़ीं, ‘‘जब वेश्या ने स्वयं मुँह खोलकर संभोग की याचना की तब ब्रह्मा ने क्यों नहीं उसकी इच्छा पूरी की? यह नारी का महान्‌ अपमान हुआ.” ऐसा कहते हुए लक्ष्मी ने भी वेश्या के शाप की पुष्टि कर दी.
(वही, पृष्ठ 189)

मेरे पास आकर मुझे अच्छी तरह स्पर्श करो. ऐसा मत समझना कि मैं कम रोयें वाली संभोग योग्य नहीं हूँ . मैं गाँधारी भेड़ की तरह लोमपूर्णा (यानी गुप्तांगों पर घने रोंगटे वाली) तथा पूर्णावयवा अर्थात्‌ पूर्ण (विकसित अधिक सटीक लगता है) अंगों वाली हूँ.
(ऋ. १।१२६।७) (डॉ. तुलसीराम का लेख-बौद्ध धर्म तथा वर्ण-व्यवस्था-हँस, अगस्त २००४)

कोई भी स्त्री मेरे समान सौभाग्यशालिनी एवं उत्तम पुत्रवाली नहीं है. मेरे समान कोई भी स्त्री न तो पुरुष को अपना शरीर अर्पित करने वाली है और न संभोग के समय जाँघों को फैलाने वाली है.
(ऋ. १०/८६/६) ऋग्वेद-डॉ. गंगासहाय शर्मा, संस्कृत साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, दूसरा संस्करण १९८५)
हे इन्द्र! तीखे सींगों वाला बैल जिस प्रकार गर्जना करता हुआ गायों में रमण करता है, उसी प्रकार तुम मेरे साथ रमण करो.
(ऋ. १०/८६/१५) (वही)

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