ये एक ऐसे शख्स की कहानी है जिसने पांचवी क्लास में इंक़लाब जिंदाबाद का नारा लगाया था...किसे पता था की इंक़लाब का ये मासूम सा स्वर रंगमंच का सबसे प्रखर स्वर बन जायेगा..आधुनिक हिंदी रंगमंच के सबसे मजबूत इन्क़लाबी स्वर को आप दिल्ली के हिंदी भवन
के पास लक्ष्मण राव की चाय दूकान पर उनकी नाट्य मण्डली के साथ हर शान देख सकते हैं. अरविन्द गौड़, यानी वो शख्स जिसके लिए नाटक एलिट क्लास की चीज़ नहीं आम आदमी की आवाज़ है..अरविन्द गौड़ ने नाटक के जो मायने दिए वो आपको नाट्य शास्त्र की किसी किताब में नहीं मिलेगी. एक तरफ नाटक को रंगमंच से उतारकर आम आदमी के बीच ला दिया वहीँ दूसरी तरफ युवा प्रतिभावां कलाकारों की एक ऐसी फौज तैयार कर रहे हैं जिसकी कोई सानी नहीं न ही नुक्कड़ पर, न ही रंगमंच पर और न ही समाज में. उत्तर प्रदेश के एक गावं से ताल्लुक रखने वाले अरविन्द का स्वर कभी मद्धम नहीं पड़ा. स्वाभाव से भदेस , अपनी क्लास में केवल नाटक नहीं सिखाते अपितु, दुनिया जहां की तमाम बातें बच्चों को सिखाते हैं.. आप आश्वस्त हो सकते हैं की आज की युवा पीढ़ी को अरविन्द प्रेमचंद से लेकर जय शंकर प्रसाद तक से रूबरू करते हैं..व्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं की बेचैनी को रंगमंच और नुक्कड़ पर स्वर देते हैं अरविन्द गौड़..प्रतिरोध के इस तीखे -सधे स्वर को सलाम ...
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