डिग्री विवाद में देश

अब आप समझिए की भाजपा , आप और कांग्रेस क्यों मोदी के डिग्री विवाद में देश को उलझाए रक्खणा चाहती है ...
कांग्रेस कमजोर विपक्ष है , जिसे ना तो मुद्दे की समझ है न ही इस दल के पास कोई ढंग से बोलने वाल नेता है. राहुल गांधी अपनी प्रतिभा के बल पर भारत के सबसे "ढकलोल " के रूप में अपनी जगह निश्चित करा चुके हैं. ना हिंदी ढंग से बोलनी आती है न अंग्रेजी . बॉडी लेंगुएज तो भाषा अल्लाह .. जब दिग्विजय सिंह और अहमद पटेल जैसे चुके हुए लोग राजनितिक सलाहकार हों तो अलग से दुश्मन की ज़रूरत भी नहीं पड़ती होगी. इन परिश्थितियों में रोहित विमला को राजनितिक सवाल बना पाने में विफल कोंग्रेस को डिग्री विवाद भी बड़ा मुद्दा लगता है जैसे अंधे के हाथ बटेर लग गया हो .
वहीँ केजरीवाल कांग्रेस नेतृत्व की कमजोरियों से भली भाँती वाकिफ हैं. पंजाब का नशा सर चढ़कर बोल रहा है . केजरीवाल को लगता है की विपक्ष की जगह वो अपनी मौजिदगी से भर सकते हैं . खुद को राष्ट्रिय नेता के रूप में पेश कर आने वाले समय में मुख्य विपक्ष के रूप में आना चाहते हैं. दूसरी बात ये है की जिस तरह की पृष्ठभूमि से आप और केजरीवाल आये हैं वहाँ उनके समर्थकों को इसी तरह के मुद्दे भाते हैं. शहरी मध्यवर्ग इन मामलों पर अपनी राय रखकर खुद को राजनितिक समझदार दिखाता रहता है.
भाजपा का मामला थोड़ा अलग है जे एन यु और रोहित विमला मामले में भाजपा की भद्द पिट चुकी है . किसानो की आत्महत्या , बढ़ती महगाई , भाजपा शाषित राज्यों में दलितों पर बढ़ते हमले , कमजोर अर्थव्यवस्था जैसे सवालों से बचने का बेहतर मौका इस बहाने भाजपा के हाथ लगा है. डिग्री विवाद भाजपा के लिए बड़े सवालों से बचने का बेहतरीन मौका है . इसलिए भी भाजपा इन मामले को बनाये रखना चाहती है.
अब इस पुरे मामले का समग्र्रता में निहितार्थ समझने की कोशिश करिये . गौर कीजिये की मुख्य रूप से शहरी मध्यवर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी आप " राजनीति में पढ़े लिखे लोगो को आने चाहिए और एजुकेशनल क्वालिफिकेशन होना चाहिए" जैसे विचार की पोषक पार्टी है. कमोवेश भाजपा भी इसी विचार को मानता रहा है. इस पुरे मामले को केंद्रीय बहस बनाकर गरीबों, दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को राजनीति से दूर करने की साजिश के तौर पर भी देखा जाना चाहिए .
-डॉ ओम सुधा

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