बिहार के मुख्यमंत्री के नाम न्याय मंच की खुली चिट्ठी

बिहार के मुख्यमंत्री के नाम न्याय मंच की  खुली  चिट्ठी 
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बीपीएससी द्वारा जारी असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में महाघोटाले के मसले पर 
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मुख्यमंत्री जी, 
आप न्यायिक सेवाओं में आरक्षण लागू कर रहे हैं और सात निश्चय यात्रा में बिहार के दौरे में मशगूल हैं। और इधर आपकी नानक के नीचे बिहार लोकसेवा द्वारा की जा रही असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। नियुक्ति में आरक्षित सीटों पर सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी बहाल किए जा रहे हैं। आयोग ने सामान्य श्रेणी के कोटे की जितनी रिक्तियाँ विज्ञापन में घोषित किया था, उससे ज्यादा अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी में सफल घोषित कर दिया गया है। 
यह क्या हो रहा है नीतीश जी! क्या इसपर आप कोई संज्ञान लेंगे? 
 • आयोग द्वारा अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में सामान्य कोटि के घोषित रिक्तियों से कहीं ज्यादा अभ्यर्थी को किया गया है उत्तीर्ण 
• आरक्षित सीटों पर उत्तीर्ण घोषित किए गए सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी 
• न्याय मंच, बिहार ने इस नियुक्ति पर तत्काल रोक लगाने व बीपीएससी के अध्यक्ष की बर्खास्तगी व सभी दोषियों को दंडित करने की मांग की है
बिहार लोकसेवा आयोग द्वारा की जा रही असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में बारी-बारी से चरम भ्रष्टाचार और आरक्षण का उल्लंघन सामने आ रहा है। दिसंबर माह के 22 तारीख को अर्थशास्त्र विषय और इससे पूर्व 13 दिसंबर को दर्शन शास्त्र के जारी परिणाम इसका खुलासा कर देता है। और यह सब तब हो रहा है जब राज्य में सामाजिक न्याय के कथित रहनुमाओं नीतीश-लालू की सरकार चल रही है। आरक्षण पर ताल ठोंकने और न्यायिक सेवाओं में आरक्षण की घोषणा कर वाहवाही बटोरने वालों के राज में राज्य की सबसे महत्वपूर्ण संस्था बिहार राज्य लोकसेवा आयोग- बीपीएससी के द्वारा की जा रही असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्तियों में जब यह खेल चल रहा है तो बाकी की नियुक्तियों की क्या स्थिति होगी, इसे आसानी से समझा जा सकता है। बीपीएससी द्वारा दो विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर हेतु लिए गए साक्षात्कार के क्रमशः जारी परिणाम ने इसकी पूरी पोल-पट्टी खोलकर रख दी है। दोनों विषयों के विज्ञापन के वक्त आयोग द्वारा सामान्य श्रेणी के जितने सीटों के लिये रिक्तियां निकाली गई थी, घोषित परिणाम में सामान्य श्रेणी में उससे ज्यादा अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया है। जाहिर है बिना भ्रष्टाचार-रुपए के लेन-देन के तो यह हुआ नहीं होगा। इसलिए यह सीधा भ्रष्टाचार और जातिवाद-ब्रह्मणवाद से जुड़ा संगीन मामला है। अब यह सरल सा सवाल उठता है कि बिना किसी निहित स्वार्थ के आयोग ने आखिर ऐसा क्यों किया?
आपको बताते चलें कि राज्य सरकार ने विश्वविद्यालय सेवा आयोग को भंग कर बीपीएससी द्वारा राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं अंगीभूत महाविद्यालयों में सहायक प्राचार्य (असिस्टेंट प्रोफेसर) हेतु दो वर्ष से नियुक्ति का अधिकार दे रखा है। आयोग द्वारा वर्ष 2014 में अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र के लिए क्रमशः विज्ञापन सं.- 52/2014 व 51/ 2014 के अंतर्गत विज्ञापन जारी किया गया था। उक्त विज्ञापन में अर्थशास्त्र के लिए कुल 236 और दर्शनशास्त्र के लिए 134 पद के लिए रिक्तियाँ निकाली गई थीं। अर्थशास्त्र के कुल 236 रिक्तियों हेतु आरक्षण कोटिवार जारी करते हुए सामान्य- 120, अनु. जाति- 38, अनु. जनजाति- 2, अत्यंत पिछड़ा वर्ग- 41, पिछड़ा वर्ग- 29 एवं पिछड़े वर्ग की महिला- 6 रिक्तियों की घोषणा की गई थी। जबकि दर्शनशास्त्र के कुल 134 रिक्तियों में- सामान्य श्रेणी- 68, अनु. जाति- 21, अनु. जनजाति- 0, अत्यंत पिछड़ा वर्ग- 25, पिछड़ा वर्ग-16 और पिछड़े वर्ग की महिला के लिए 4 रिक्तियां घोषित थीं। इन्हीं रिक्तियों के विरुद्ध विज्ञापन जारी कर आवेदन आमंत्रित किये गए थे। लेकिन परिणाम जारी करते वक्त आयोग अपनी इन घोषणाओं के खुद ही चिथड़े उड़ा रहा है।
आयोग ने इसका परिणाम जारी करते हुए अर्थशास्त्र में सामान्य श्रेणी के लिए घोषित 120 रिक्तियों के विरुद्ध 127 अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित कर दिया। और दिव्याङ्ग कोटे से उत्तीर्ण 6 अभ्यर्थियों में से 4 सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित किया गया है। इस विषय में आरक्षण कोटिवार 32 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के 1, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के 23, पिछड़ा वर्ग- 21 और पिछड़ा वर्ग महिला-6 अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित किया गया है। वहीं दर्शनशास्त्र विषय में सामान्य श्रेणी में 68 रिक्तियों के स्थान पर 73 अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित कर दिया है। यह आरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की खुली अवहेलना है। आखिर आयोग ने जब स्वयं विज्ञापन में 68 रिक्तियों को खुला और बाकी को आरक्षित घोषित करते हुए आवेदकों से आवेदन आमंत्रित किए थे, तब जारी रिजल्ट में सामान्य श्रेणी की संख्या आखिर बढ़ कैसे गई? इसका जवाब तो बीपीएससी और अंतिम तौर पर राज्य सरकार को ही देना है।
बीपीएससी ने अर्थशास्त्र व दर्शनशास्त्र विषय के लिए क्रमशः 863 तथा 669 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया था, जिनका साक्षात्कार इस साल के शुरू के महीने 15 फरवरी से 4 मार्च व 22 फरवरी से 5 मार्च के बीच आयोजित हुआ। आयोग ने पुनः पटना उच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन करते हुए वैसे अभ्यर्थी, जो विज्ञापन की अन्य न्यूनतम शर्तों को पूरा करते थे और 1 दिसंबर 2002 के पूर्व BET/SET (बिहार पात्रता परीक्षा/ राज्य पात्रता परीक्षा) उत्तीर्ण क्रमशः 31 व 18 उम्मीदवारों को 22 नवंबर 2016 को साक्षात्कार हेतु आमंत्रित किया। आयोग के मुताबिक उक्त दोनों अवधि में आयोजित साक्षात्कार में दोनों विषयों में क्रमशः कुल 567 व 493 उम्मीदवार सम्मिलित हुए, जिसमें से क्रमशः 30 व 18 उम्मीदवार पर्याप्त दस्तावेज़ आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाने के कारण रद्द कर दिये गए। इस प्रकार दोनों विषयों में क्रमशः 537 व 475 उम्मीदवारों से लिए गए साक्षात्कार और एकेडमिक अंकों के योग के अनुसार आयोग ने मेधा सूची तैयार कर क्रमशः 214 व 132 उम्मीदवारों को राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालय में नियुक्ति हेतु सफल घोषित कर दिया है।
आयोग द्वारा जारी परिणाम में विज्ञापन के मुताबिक दर्शनशास्त्र में जहां 68 के स्थान पर 73 अभ्यर्थियों को सामान्य कोटि में उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया है। 132 सफल घोषित अभ्यर्थियों में शेष 59 में से 4 जिन निःशक्त उम्मीदवारों को सफल घोषित किया गया है, उसमें से तीन सामान्य श्रेणी के ही हैं। आरक्षित श्रेणी मे सफल इस 59 अभ्यर्थियों में से 18 अनुसूचित जाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के 21, पिछड़ा वर्ग के 13 जिसमें से 1 निःशक्त कोटे में, और पिछड़ा वर्ग महिला के लिए 4 अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित किया गया है। इस आरक्षित कोटे में अनुसूचित जनजाति का एक भी नहीं है। कुल 132 में से 5 मुसलमान सामान्य श्रेणी में और 6 मुसलमानों का चयन आरक्षित श्रेणी के तहत हुआ है।
आयोग द्वारा जारी इस परिणाम में आयोग ने स्वयं अपने द्वारा जारी विज्ञापन में सामान्य श्रेणी के लिए घोषित सीटों की परवाह किये बगैर मनमाने ढंग से यह रिजल्ट जारी किया है। बीपीएससी जैसी संस्था का आरक्षण रोस्टर के मामले में यह रुख है तो बाकि नियुक्तियों और नामांकनों में आरक्षण कितना लागू होता होगा, यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। और यह तब हो रहा है जब पिछले तीन दशक से राज्य में दलित-पिछड़ों-अति पिछड़ों के नाम पर राजनीति करने वाले लालू-राबड़ी-नीतीश बारी-बारी से सत्ता में हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की मंडलवादी राजनीति के रहनुमा आरक्षण के इस खुले उल्लंघन के संगीन मामले पर क्या संज्ञान लेते हैं? दरअसल अपने प्रारम्भ से ही आरक्षण को लेकर सत्ता मिशनरी-नौकरशाही और नियुक्ति करने वाली एजेंसियों का रवैया ऐसा ही रहा है। पूरे सिस्टम के सर्वोच्च पदों पर बैठे सवर्ण-सामंती ताकतों की नुमाइंदगी आज भी इतनी जबर्दस्त है कि वह हर बार अपनी शातिराना चालों के जरिये इन संवैधानिक प्रावधानों को धता-बता देते हैं। अब समझिए कि आरक्षण कोटे के पार जाकर जब सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण घोषित करने की वे हिम्मत जुटा लेते हैं तो अनारक्षित पदों पर नियुक्तियों में दलित-पिछड़ों के साथ किस किस्म का भेदभाव बरता जाता होगा। ऐसे मामलों में दोषी को सख्त सजा की गारंटी कर नजीर नहीं पेश की जाएगी, तब तक यह सब इसी तरह धड़ल्ले से चलता रहेगा और दलित-पिछड़े-आदिवासियों व अल्पसंख्यकों के साथ यह भेदभाव होता रहेगा। न्याय मंच, बिहार ने इस महाघोटाले को उजागर करते हुए राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र भी भेजा है और इस नियुक्ति पर तत्काल रोक लगाने व बीपीएससी के अध्यक्ष की बर्खास्तगी सहित सभी दोषियों को दंडित करने की मांग की है। न्याय मंच ने 18 जनवरी को पटना में इस मसले पर प्रतिवाद-प्रदर्शन का भी ऐलान किया है। कुछ असफल अभ्यर्थी इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट जाने का भी मन बना रहे हैं। लेकिन ऐसे गंभीर मसले पर राज्य सरकार की चुप्पी बनी हुई है। चुप्पी तोड़िए नीतीश जी और कुछ करिये! अन्यथा इसका भी इतिहास तो लिखा ही जाएगा! तब इतिहास में आपके राज का यह कारनामा कहाँ दर्ज होगा, यह बताने की जरूरत नहीं है!
न्याय मंच की ओर से जारी ........

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