ये योगी आदित्यनाथ का नहीं रीवा सिंह का गोरखपुर है

गोरखपुर, वही हिंदुओं का गढ़! योगी आदित्यनाथ वाला? समझ नहीं आता कि इसपर फूलकर कुप्पा हो जाऊं या पूछने वाले की गलतफ़हमी दूर करूं। योगी आदित्यनाथ ने सन् 1998 से अभी तक पराजय का मुंह नहीं देखा पर इसका मतलब ये भी तो नहीं कि योगी आदित्यनाथ से इतर गोरखपुर कुछ है ही नहीं। गोरखपुर की सबसे अच्छी बात ये है कि ये किसी एक घटना या संस्मरण के जरिए नहीं जाना जाता। किस्सों की गठरी है गोरखपुर। आप जब अमन-चैन के किस्से सुनेंगे तो कबीर का ज़िक्र होगा। कबीर का ज़िक्र होगा तो उनकी समाधि से गोरखपुर का ज़िक्र अपने आप हो आएगा। गीताप्रेस धर्मग्रंथ प्रकाशित करने वाली देश की सबसे बड़ी प्रेस है। और गीताप्रेस मतलब गोरखपुर! गोरखनाथ मंदिर और मकरसंक्रांति की धूम देखनी है तो गोरखपुर आइए। एक महीने का मेला लगता है यहां और भीड़ ऐसी कि पूछो मत। एक तरफ रामगढ़ ताल तो दूसरी तरफ राप्ती नदी.. इसी बीच अपनी ज़िंदगी जीता और खुद को बखूबी कायम रखता शहर है गोरखपुर। एक दोस्त ने कहा कि मुझे तो लगता ही नहीं था कि लखनऊ के आगे भी यूपी में कुछ अच्छा बचता है, उसके बाद दो-चार स्टेशन ही गया था। गोरखपुर गया तो लगा अरे! अभी बहुत कुछ बचा है।
कृषि दर्शन में प्रदेश के शीर्ष पांच महानगरों में अनाज के दाम गिनये जाते तो उसमें लखनऊ, इलाहाबाद के अलावा गोरखपुर भी होता, देखकर अच्छा लगता था। फ़िराक़ गोरखपुरी से लेकर अनुराग कश्यप और जिम्मी शेरगिल इसी ज़मीं की धरोहर हैं। आपको इतिहास देखना है तो गोरखपुर के कारागार चले जाइए। चौरीचौरा कांड गोरखपुर में ही हुआ था। काकोरी कांड के बाद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर की जेल में फांसी हुई थी।
अपने अतीत को संभाले हुए वर्तमान को समझने की कोशिश करता हुआ शहर है गोरखपुर। गोलघर, इंदिरा बाल विहार, सिटी मॉल, वॉटर पार्क, रेल म्यूज़ियम, पक्की सड़कें और खेत-खलिहान, नदी में नहाते लोग, संकरी गलियां, पगडंडियां, स्कूल जाते बच्चे कॉलेज जाती ऊर्जाएं, कोचिंग में उमड़ता प्रेम.. सब समाहित है इसमें। विश्व का सबसे लंबा प्लैटफॉर्म गोरखपुर में है और धर्मशाला की ओर जाते टेड़े-मेढ़े रास्ते भी गोरखपुर में हैं। इस शहर की फ़िज़ा बहुत कुछ कहती है। अगर रुककर सुनें तो इस शहर की अपनी एक डायरी है।

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