आरएसएस मानवता के पुजारी गांधी को एक बनिये के रूप में देख रहा है- डॉ मुकेश कुमार

गांधी की तस्वीर की जगह मोदी जी की तस्वीर लगा दिए जाने से दुखी आत्माओं से विनम्र निवेदन है कि, वे दुखी न हों! अब गांधी के हाथ से मोदी ने चरखा छिन ही लिया है तो उनसे यह कहा जाना चाहिये कि चर्खा चलावें मोदीजी! अन्यथा इसे सस्ती लोकप्रियता तो माना ही जाएगा साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों से सत्ता द्वारा किये जा रहे भद्दा मजाक के रूप में भी इसे देखा जाएगा। मोदीजी और बीजेपी-आरएसएस वाले आखिर चाहते क्या हैं? सावरकर जैसे साम्प्रदायिक और अंग्रेजों के पिट्ठुओं का तैल चित्र तो पहले ही पार्लियामेंट में लगवा ही चुके हैं, अब आगे वह इसी तरह से जनता के नायकों की स्मृतियों को कुचलता जाएगा! अब जब आरएसएस-बीजेपी के खाते में स्वतन्त्रता आंदोलन का कोई तासीर रखने वाला साधारण नायक भी नहीं है तो आजादी के बाद के कांग्रेसियों से भी गलीज हरकत पर उतर आया है। कांग्रेस ने तो गांधी के विचारों से किनारा किया था, लेकिन वे भी गांधी से जुड़ी स्मृतियों को हटाने की हिम्मत न जुटा पाये थे। आजादी के बाद कांग्रेस ने नेहरू परिवार को हर जगह बिठा दिया था। योजनाओं से लेकर अन्य रूपों में नेहरू-इंदिरा-राजीव को हर जगह बिठा दिया गया था। चरखे के बारे में तो गांधी जी के जीते जी नेहरू ने कह दिया था कि मैं आपका चर्खा खूंटी पर टांग दूंगा। और आजादी के बाद मिश्रित अर्थव्यवस्था का पूंजीवादी मॉडल अपनाते हुए नेहरू ने गांधी के चरखे को खूंटी में ही टांग दिया था। खादी संस्थाओं को सरकारी अनुदान पर आश्रित बनाते हुए अपनी मौत मरने के लिये विवश कर दिया। वैसे भी जयादातर खादी संस्थाओं के पास गांधी की तरह कोई मिशन तो था नहीं। उच्च जाति-वर्ण की आश्रय स्थली बन चुकी खादी संस्थाएं गांधी के नाम पर ब्राह्मणवादी पाखंड का ही केंद्र बन कर रह गईं। यही कारण है कि गांधी की तस्वीर की जगह मोदी जी की तस्वीर लगा देने के बाद भी खादी संस्थाओं के लोगों को गांधी जी के सत्याग्रह के मार्ग तक की याद नहीं आयी।
अब आरएसएस-बीजेपी इतने अभाव से जूझ रहा है कि अम्बानी-अडाणी के हितैषी नरेंद्र मोदी के अलावा उनके पास दूसरा कोई नायक भी तो नहीं है, जिसकी वे तस्वीर भी दुसरे पर आरोपित कर सकें। और हाँ इसके पिछे आरएसएस का वर्णवादी दिमाग भी काम कर रहा है कि वह मानवता के पुजारी गांधी को एक बनिये के रूप में देख रहा है और उनकी जगह उसी जाति में पैदा हुए मोदी को पेश कर रहा है।
चर्खा, खादी, बुनकर की हालत किसी से छुपी हुई नहीं है, ये सब अंतिम सांस ही ले रहे हैं। अब गांधी की स्मृति को भी बेदखल कर मोदी जी की तस्वीर लगाकर सत्ता ने अपने इरादे और भी स्पष्ट कर दिए हैं। अब भी सत्ता के इर्द-गिर्द मंडराने वाले ब्रह्मणवादी गांधियों की ग्रन्थियों का लहू पूरी तरह से पानी न हो गया हओ तो उन्हें अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिये और कम से कम गांधी की स्मृति की हिफाजत के लिये ही सही आगे आना चाहिये!


डॉ मुकेश कुमार 

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