दुनिया की तमाम चरित्रहीन लड़कियों के नाम मधुलिका की यह कविता

दुनिया की तमाम चरित्रहीन लड़कियों के नाम-
वे बड़े मनोयोग से
उधेड़ते रहे बखिए चरित्र के
हमने तोड़ दी तुरपाई वाली सुई
और चरित्र को टांक दिया
पतझर में नंगे हो चुके पेड़ों के पत्तों की जगह
आखिर उसका रंग सब्ज़ जो था
वे रंगते रहे हमारा चरित्र
स्याह रंग में
हमने ठहाका लगाया
और टांग दिया चरित्र को तपते सूरज के आगे
अब उससे सूरज की तपिश कम लगती है
जेठ के महीने में
अब चरित्र की जगह हमने पहना है
सूरज की खूँटी से उतारा इन्द्रधनुष
हमारे इन्द्रधनुषी लिबास देखकर
उन्होंने गढ़ी कई सच्ची झूठी कहानियाँ
हमारे अतीत की
हमने इसे माचिस की तीली दिखाई
और ठिठुरते हाथों को दी सेंक
वे बौखलाए
उन्होंने की आरोपों की बौछार
हमने बौछार में भीगे बालों को झटका
इन्द्रधनुषी पैरहन निचोड़ा
और बौछार की तरफ पीठ कर ली
अब मेरे सामने
सारे मौसम सज़दे में हैं..

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