नीतीश सरकार दलितो की नही बल्कि सामंतो के हितैषी है- हरिकेश्वर राम

दलितों पर बढ़ता अत्याचार-दोषी कौन

हरिकेश्वर राम 
स्वतंत्रता के बाद बाबा साहेब के अथक प्रयास से दलितों का मुद्दा मुख्य धारा का मुद्दा बना जिसमें लगभग सामाजिक स्वीकार्यता भी थी और लोग दलितों के प्रति एक स्वभाविक सहानुभूति भी थी ।इसका एक मात्र कारण था कि दलित समाज को अपने संवैधानिक अधिकारों की न तो जानकारी थी और न लड़कर उसे हासिल करने की शक्ति थी ।यहाँ तक कि अपने उद्धारक बाबा साहेब के संबंध में भी जानकारी नही थी ।कांसीराम जी के आंदोलन से कुछ कुछ जानकारी होने लगी और लोग बाबा साहेब और संवैधानिक अधिकारों को जानने लगे और छिटपूट ही सही अधिकारों की लड़ाई लड़ी जाने लगी ।जस जस जागरूकता बढ़ती गयी लोगो की सहानुभूति घटती गयी ।धीरे धीरे संवैधानिक अधिकारों को सीज करने की साजिसें रची जाने लगी ,यहाँ तक जिन पिछड़ो की लड़ाई मे हमने साथ दिया वे भी हमारे खिलाफ साजिसों में शामिल हो गये ।आज संघर्ष जहाँ तेज होता है वहाँ सरकारें संस्थागत हत्या कराने से भी नही चुकते ।रोहित वेमूला कांड इसका साक्षी है ।
बिहार में 2004से 2008 कुल चार वर्षों के मेरा और मेरे साथियों के संघर्ष से संवैधानिक परिणामी वरीयता को हासिल करने में सफलता हासिल किया जिसका लाभ सैकडों लोगों को प्राप्त हुआ ।लेकिन पुरा विभाग मेरे खिलाफ खड़ा हो गया और संस्थागत रूप से मुझे प्रताडित किया जाने लगा ।मुझे विभाग से बाहर.किया गया ,मनगढंत आरोप लगाकर मुझे प्रोन्नति नही दी गयी ,यहाँ तक कि हमसे 20 जुनीयर को मुख्य अभियंता बनाकर मेरे उपर मेरे जुनीयर को बैठाया गया ताकि मर्माहत होकर लडाई लड़ना हम छोड़ देंगे ।लेकिन हम जानते थे कि समाज की लड़ाई लड़ने वालों के यही होता है ।समाज के लोगों ने मुझे इतना प्रतिष्ठा दिया जो सरकार के मेरी प्रतिष्ठा हनन करने से क ई गुना अधिक है ।नीतीश सरकार के द्वारा अमीरदास आयोग भंग करने मात्र से यह मेसेज चला गया कि सरकार दलितो की नही बल्कि सामंतो के हितैषी है ,नतीजा सामने है सभी नरसंहारों में सामंती आततायी बाइज्जत बरी हो गये ।जहाँ कहीं भी उत्पीड़न के मामले हुए किसी मे सजा नही हुई ।अनैतिक रूप से प्रोन्नति मे आरक्षण समाप्त करने की घोषणा के चार माह के अंदर बढ़ चढ़ कर अनुपालन हो गया ।पहले समाज असहिष्णु था सरकार संवेदनशील थी तो कुछ हद तक सुरक्षा का उम्मीद रहती थी ।
अब समाज भी संवेदनहीन और ,सरकार भी संवेदनहीन ।अत्याचार बढ़ना सो संस्थागत रूप से बढ़ रहा है ।संगठित संघर्ष से ही अत्याचार से मुक्ति मिलेगी ।

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