जनेऊ राष्ट्रवाद बनाम बहुजन राष्ट्रवाद-डॉ ओम सुधा

भारत के सन्दर्भ में आप राष्ट्रवाद को गौर से देखिएगा की इस देश का में राष्ट्रवाद एक सवर्ण मानसिकता है जो जनेऊ की श्रेष्ठता पर टिका है. जिसके मूल में वर्णाश्रम व्यवस्था की स्थापना की प्रतिबद्धता है. भारतीय जनेऊ राष्ट्रवाद का झंडा ढोने वाला अगर सवर्ण न हुआ तो भी उसका नेतृत्व सवर्णों के हाथों में ही होता है. जबकि इसके शिकार अधिकांशतः गैर सवर्ण होते हैं. असल में राष्ट्रवाद इनके लिए दलितों- पिछड़ों- मजलूमों पर वर्चस्व कायम करने का एक टूल भर है. 

आप देखिये न की कैसे इन्होने राष्ट्र को प्रतीकों में उलझा दिया है. झंडे-नारे और हिंदुत्व ही इनका राष्ट्रवाद है. ये बहुत सफाई से हिंदुत्व को राष्ट्रवाद और देशभक्ति से जोड़ देते हैं. पर, सवाल यह है की क्या सचमुच राष्ट्र केवल प्रतीक भर हैं. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के पहले चार शब्द हैं - "हम भारत के लोग"" .. मेरा मानना है की हम भारत के लोग मिलकर भारत को एक राष्ट्र बनाते हैं. यही स्थिति बहुजन राष्ट्रवाद की ओर ले जाता है. जहाँ, दलित, पिछड़े, किसान, विद्यार्थी, आदिवासी, गरीब, मजलूम सब मिलकर एक राष्ट्र का निर्माण करते हैं. जहां सबके लिए समुचित अवसर हो, जहां सबके लिए सामान न्याय हो . जनेऊ राष्ट्रवाद तर्क से कोसों दूर होता है जबकि बहुजन राष्ट्रवाद वैज्ञानिकता और तर्क पर टिकी हुई अवधारणा है. जनेऊ राष्ट्रवाद आपके अन्दर धर्म को लेकर उन्माद पैदा करता है जबकि बहुजन राष्ट्रवाद शान्ति और बंधुत्व की बात करता है. 

जनेऊ राष्ट्र्वाद्द आपको विधि और व्यवस्था को तोड़कर अपराधी की बना देता है, यह एक ऐसी व्यवस्था का पोषण करता है जो उना में दलितों की पीठ पर लाठी बनकर बरसता है तो कभी अख़लाक़ की जान ले लेता है तो कभी रोहित वेमुला को इतना मजबूर कर देता है को वो पंखे से लटककर जान दे देता है. 

असल में जनेऊ राष्ट्रवाद एक फर्जी अवधारणा है जिसे देशभक्ति के आवरण में लपेटकर बहुत बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता रहा है. सैनिको की शहादत को इससे जोड़कर इसको बहुत महान बताया जाता है जबकि सच ये होता है की सैनिक किसी धर्म पर टिके राष्ट्रवाद के कारण अपनी शहादत नहीं देते बल्कि अपने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देते हैं. देश जो किसी मनु स्मृति-गीता- रामायण से संचालित नहीं होता बल्कि संविधान पर टिका हुआ है. 

बहुजन राष्ट्रवाद अपनी वैचारिकी संविधान निर्माता डॉ आंबेडकर से ग्रहण करता है, उन्माद पैदा नही करता जहाँ अच्छा होने का मतलब अच्छे कपडे पहनना नही होता, जहाँ किसी अख़लाक़ को पीट कर मारा नही जाता ना कोई रोहित वेमुला पंखे से लटककर जान देता है....
 
(ये लेखक के अपने विचार हैं, लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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