भारतीय समाज व्यवस्था की बनावट का इस चित्र में सही चित्रण किया गया है। वर्णव्यवस्था के मुताबिक़ इसी किस्म का विभाजन है समाज में--एक के ऊपर दूसरा और सबसे ऊपर ब्राह्मण वर्ण और सबसे नीचे अस्पृश्य व शूद्र।
भेदभाव के विरुद्ध एक हद तक संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद भारतीय मानस में आज भी इसका असर जबरदस्त है। दलित उत्पीड़न की घटनाएं और दलितों के प्रति उच्च वर्ण के अधिकाँश हिस्से के भीतर व्याप्त नफरत इसकी पुष्टि करते हैं। धर्मशास्त्रों का लोकजीवन में इतना गहरा असर है, जो आज भी पूरे भारतीय समाज और पूरे सिस्टम में व्याप्त है। देखिये इस सीढ़ीनुमा सामाजिक ढाँचे में कौन किसपर बोझ बना हुआ है! श्रम और श्रमिकों का ऐसा स्थाई शोषण और अपमान इस वर्ण व्यवस्था के जरिये ही कायम हुआ था। जाहिर है इस बोझ को शोषितों के संगठित संघर्ष के जरिये ही उतार फेंका जा सकता है। गुजरात, जेएनयू, भागलपुर से लेकर देश के कोने-कोने में यह संघर्ष नये सिरे से उठ खड़ा हुआ है। ऐसे तमाम संघर्षों को ताकत देने की जरूरत है....
डॉ मुकेश
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