पीछे कमरे में ले जाता और उसकी स्कर्ट उतारने की कोशिश करता- शालू यादव

शालू यादव 
बचपन में 'चाइल्ड एब्यूज' का शिकार हुई कई लड़कियों से मिली हूँ। माफ़ कीजियेगा! शिकार से सटीक शब्द सेक्सुअल हरासमेंट की सर्वाइवर के लिए इस समाज ने पनपने ही नही दिया। उन लड़कियो में से कुछ ने एकदम आया गया वाले टोन में तो कुछ ने लम्बी सांसे लेते हुए ,तो कुछ ने गुस्सा दिखाते हुए सारी बातें बताई। लेकिन एक चीज जो सबमे कॉमन थी कि वो ये मानती थी की उनकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को उस घटना ने बेहद प्रभावित किया है। वो आज भी मूड स्विंग,सेक्स सम्बन्धी समस्यायो,अग्रेसिवनेस,रिश्तों में असुरक्षा जैसी समस्याओ से दो चार होती रहती है। दो लडकिया ऐसी मिली जो कि बेस्ट फ्रेंड्स है। अमूमन हँसती मुस्कुराती,उछलती कूदती दिखाई पड़ती है। उनमे से एक ने बताया कि जब वो 7 साल की थी तो शाम को आई स्पाई खेलते वक़्त दूर का रिश्तेदार उसे पीछे कमरे में ले जाता और उसकी स्कर्ट उतारने की कोशिश करता..............ये कई दिनों तक चला । कभी जब वो चिल्लाने की कोशिश करती तो मुहँ दबा के सिगरेट से जलाने की धमकी देता। और एक दिन जला भी दिया।अपनी शर्ट उठा के वो निशान दिखाती है। मैं सहम जाती हूँ। वो फीका सा मुस्कुरा के कहती है एक दिन मैंने कैंची उठा के मुहं पे मार दी। बस वही आखिरी दिन था तबसे कुछ नही हुआ। कई दिनों तक हर एक पुरुष जो उसके जीवन में किसी तरह से भी आया। उसने उसे निकाल फेंका। यकीन ही नही कर पाती थी कि कोई भी पुरुष देह के परे प्रेम भी कर सकता है।घटना के समय वो माँ पिता से दूर रहती थी। उसके बाद भी लगभग 8 साल तक दूर रही। उस पुरे प्रकरण को अकेले झेला था उसने, दहशत,आँसू,पीड़ा सबकुछ अकेले। लड़की अब 23 की है। खुश है,छात्र राजनीती में सक्रीय रही है। जिले स्तर पर नृत्य प्रतियोगिताएँ जीती है। लिखती है,पढ़ती है। मारपीट करने में जरा सा नही डरती। बस रिश्ते पहले की ही तरह नही चल पाते...वो दुखी भी नही होती अब।
दूसरी लड़की जो पहली के बिलकुल उलट है।बात बात पर मारपीट नही करती लेकिन जव पहली किसी को पीटना शुरू करती है तो ये भी ये सोचके ' कि बहन चलो, अब नही मारेंगे तो काम भर का पा जायेंगे'
धुनना शुरू कर देती है।
ये बताती है कि उसके दो रिश्तेदारो ने लगातार कई दिनों तक उसके साथ 6 साल की उम्र में बलात्कार किया।इसने बोलना छोड़ दिया था,दिनभर गुमसुम रहती थी, दिमाग में गांठे पड़ गयी थी। कई बार आत्महत्या का भी सोचा। स्लीपिंग डिसऑर्डर,स्पीच डिसऑर्डर, अवसाद की चपेट में भी आ गयी थी। अब ठीक हैं। जीवन में कड़े फैसले लिए है। खुश रहती है। हाँ! कुछ समस्याएं अभी भी है। जैसे स्पीच डिसऑर्डर की समस्या। लेकिन अवसाद वगैरह को तो ये अब ठेंगा दिखा देती हैं। जिंदादिल है, पेंटिंग्स बनाती है,पॉलिटिक्स करती है।
दोनों जब भी ये बताती है तो खुद को ना विक्टिम समझती है ना ही सर्वाइवर । बस जिंदगी का एक फेज़ समझ के भूला देना चाहती है और लड़ना चाहती है किसी के साथ ऐसा न हो।
मैं विदा लेंने के लिए बाय बोलकर उठने को होती है। तब तक पहली वाली कहती है 'शिव कुमार बटालवी'की ये कविता जरूर पढियेगा
'अनछु शिखरां नूं छु पांवा
जी चाहे पँछी हो जांवा...
फिर दोनों एक साथ गाने लगती है
'हिमटीसिया मोइया मोइया,युगां युगां ते कक्कर होइयां घुट्ट कालेजा मैं गरमावा,जी चाहे पंछी हो जँवा....

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