आप फ्री द निप्पल कैम्पेन चलाते हैं तो अगर कोई मर्द फ्री फ्रॉम अंडर वियर चलाये तो जज नहीं करना-अपूर्वा प्रताप सिंह
स्त्री का खुद को वस्तु न मानते हुए भी वस्तु सा व्यवहार-
शुलामेथ फायरस्टोन ने अपनी किताब 'डालेक्ट्स ऑफ़ सेक्सेज़' में स्त्री शरीर को ही उसकी तरक्की में बाधा माना है । जब मैंने उन्हें पढ़ा था तब मैं उनसे सहमत नहीं थी(अभी भी नहीं हूँ) । आज मैं इस पॉइंट को दूसरे ढंग से देख रही हूँ, स्त्री शरीर आज उसकी प्रगति में बाधक बन गया है क्यूंकि स्त्री शायद खुद को ऑब्जेक्ट न माने लेकिन वो खुद को ऑब्जेक्तिफाई कर रही है ।
आप शायद न माने, लेकिन मेरे मुहल्ले में एक आंटी रहती हैं जो रेयरली ही ब्लाऊज़ पहने वो ऐसे ही घूमती हैं और वो अकेले ही रहती हैं, आज तक कभी उनके साथ किसी ने बदतमीजी कोशिश नही की क्योंकि वो बहुत खतरनाक हैं, उनके हाव भाव अलग हैं । वो बिना कपड़ों रहती हैं यह उनकी मर्जी है, लेकिन उन्होंने कभी अपने शरीर को दिखाने के लिए सुंदर बनाने की कोशिश नहीं की ।
कॉलेज ग्राउंड में लड़कियां घण्टों मैचेज़ देखती हैं (खेलती नहीं है, यू नो टैनिंग हो जाती है😐) लड़के ताड़ती हैं, बिलकुल उनका राइट है ये लेकिन इसका उल्टा इमेजिन कीजिये ! किस लड़के की बॉडी कैसी है, उसका डिस्क्रिप्शन होता है, किस (kiss) का सीन बनेगा इस उम्मीद में लिप ग्लॉस लगता है, और क्लीवेज दिखाने से कैसे बात बनेगी, इस पर व्याख्यान चलता है । क्या यह सब एक दूसरे को ओजेक्टिफाय करने और ऑब्जेक्ट बनने की राह नहीं है ? क्या हम सब
जाने अनजाने एक भोगवादी समाज की रचना नहीं कर रहे ? वो कौन सी सोच है जो सर्दी में भी स्कर्ट पहनने बाध्य करती है ।
आप कोई भी गाना देखेंगे, उसमें साफ़ साफ़ कैमरा औरत को बर्फ़ी जैसा ट्रीटमेंट देता है, स्त्री को लेकर बाजारू फंतासी क्रिएट करता है, जिसका भुगतान हर स्त्री कर रही है ।
यह उसी मर्दवादी सोच का संवाहक है जिससे लड़ने का दावा स्त्री कर रही है लेकिन वो मुझे फंसी लगती है, क्योंकि उसकी मानसिकता कपड़ों में स्वच्छंदता ढूंढ रही है ।
उसको पता है कि कैसे उसके किसी जगह मुस्कुराने से 10-20 रु कम हो जायेंगे । जब वो खुद ही अपनी मुस्कान की कीमत 20 रु लगायी हुई है तो दूसरे उसे वस्तु मानेंगे ही ।
लड़कियां खुद ही सूट पहनने वाली लड़कियों को बहन जी का दर्जा देती हैं, क्या यह मोलेस्टेशन नहीं है ? आप लाख कह लें कि कपड़े अपने लिए पहने गए लेकिन कहीं न कहीं दूसरे उसमें शामिल होते हैं ।
ज्यादातर लड़कियां, खुद ही दूसरी लड़की को जज उसकी bfs की संख्या से करती हैं, अगर उनका bf लड़की का मजाक बनायेगा तो उसे रोकती नहीं हैं, क्योंकि कहीं न कहीं आपको मजा आ रहा होता है कि आप श्रेष्ठ दिख रहे हो वहां जहां पुरुष डिसाइड कर रहे हैं ।
आज जब सब कुछ इतना भोगपूर्ण, शोशा पूर्ण होता जा रहा है, उसे देखते हुए अगर कोई यह कहे कि लड़कियां किसी को कुछ नहीं दिखाना जताना चाहती तो मैं rip कहती हूँ ।
जब
आप फ्री द निप्पल कैम्पेन चलाते हैं तो अगर कोई मर्द फ्री फ्रॉम अंडर वियर चलाये तो जज नहीं करना चाहिए ।आप शायद न माने, लेकिन मेरे मुहल्ले में एक आंटी रहती हैं जो रेयरली ही ब्लाऊज़ पहने वो ऐसे ही घूमती हैं और वो अकेले ही रहती हैं, आज तक कभी उनके साथ किसी ने बदतमीजी कोशिश नही की क्योंकि वो बहुत खतरनाक हैं, उनके हाव भाव अलग हैं । वो बिना कपड़ों रहती हैं यह उनकी मर्जी है, लेकिन उन्होंने कभी अपने शरीर को दिखाने के लिए सुंदर बनाने की कोशिश नहीं की ।
कॉलेज ग्राउंड में लड़कियां घण्टों मैचेज़ देखती हैं (खेलती नहीं है, यू नो टैनिंग हो जाती है😐) लड़के ताड़ती हैं, बिलकुल उनका राइट है ये लेकिन इसका उल्टा इमेजिन कीजिये ! किस लड़के की बॉडी कैसी है, उसका डिस्क्रिप्शन होता है, किस (kiss) का सीन बनेगा इस उम्मीद में लिप ग्लॉस लगता है, और क्लीवेज दिखाने से कैसे बात बनेगी, इस पर व्याख्यान चलता है । क्या यह सब एक दूसरे को ओजेक्टिफाय करने और ऑब्जेक्ट बनने की राह नहीं है ? क्या हम सब
जाने अनजाने एक भोगवादी समाज की रचना नहीं कर रहे ? वो कौन सी सोच है जो सर्दी में भी स्कर्ट पहनने बाध्य करती है ।
आप कोई भी गाना देखेंगे, उसमें साफ़ साफ़ कैमरा औरत को बर्फ़ी जैसा ट्रीटमेंट देता है, स्त्री को लेकर बाजारू फंतासी क्रिएट करता है, जिसका भुगतान हर स्त्री कर रही है ।
यह उसी मर्दवादी सोच का संवाहक है जिससे लड़ने का दावा स्त्री कर रही है लेकिन वो मुझे फंसी लगती है, क्योंकि उसकी मानसिकता कपड़ों में स्वच्छंदता ढूंढ रही है ।
उसको पता है कि कैसे उसके किसी जगह मुस्कुराने से 10-20 रु कम हो जायेंगे । जब वो खुद ही अपनी मुस्कान की कीमत 20 रु लगायी हुई है तो दूसरे उसे वस्तु मानेंगे ही ।
लड़कियां खुद ही सूट पहनने वाली लड़कियों को बहन जी का दर्जा देती हैं, क्या यह मोलेस्टेशन नहीं है ? आप लाख कह लें कि कपड़े अपने लिए पहने गए लेकिन कहीं न कहीं दूसरे उसमें शामिल होते हैं ।
ज्यादातर लड़कियां, खुद ही दूसरी लड़की को जज उसकी bfs की संख्या से करती हैं, अगर उनका bf लड़की का मजाक बनायेगा तो उसे रोकती नहीं हैं, क्योंकि कहीं न कहीं आपको मजा आ रहा होता है कि आप श्रेष्ठ दिख रहे हो वहां जहां पुरुष डिसाइड कर रहे हैं ।
आज जब सब कुछ इतना भोगपूर्ण, शोशा पूर्ण होता जा रहा है, उसे देखते हुए अगर कोई यह कहे कि लड़कियां किसी को कुछ नहीं दिखाना जताना चाहती तो मैं rip कहती हूँ ।
जब
जब हम एक अजीब सी लड़ाई में धंसे हुए हैं, वहां हमारे (स्त्रियों) में कहाँ कमी है यह भी सोचने की चीज़ है । कहाँ हमें खुद से ही लड़ना है यह भी ।
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