1. अयोध्या में सुरक्षाबलों की तैनाती के चलते चीजों की कीमतें आम आदमी की पहुंच से बाहर चली गयी हैं.
2.हिंदुत्व परिवार की तरफ़ से हर साल होनेवाले आंदोलन के आह्वान ने हमारा जीवन दुश्वार कर दिया है. 3.गोंडा,बस्ती और बहराइच जैसे जिलों की ओर्थक हालत देश के सबसे बदतर हालतवाले जिलों से बेहतर नहीं है.
मनुष्य मूलत: आर्थिक प्राणी है. अगर आप इस माक्र्सवादी धारणा से सहमत नहीं हैं, तो आपको अयोध्या की यात्रा करनी चाहिए और उन महंतों से मिलना चाहिए, जो इस भौतिक जगत को मिथ्या बताते हैं और नैतिकता का उपदेश देते हैं. मिलिये नायक मंदिर के महंत मान महेश दास से जो साधुओं के एक ग्रुप के अध्यक्ष भी हैं और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राम मंदिर निर्माण के बारे में बराबर चिट्ठियां लिखते रहते हैं.
खंडहर में तब्दील हो रहा उनका आश्रम अयोध्या के बीचों-बीच स्थित है. कितना विडंबनापूर्ण है कि ध्वस्त हो रही ईंटों की इस इमारत का नाम प्रमोद वन है, जिसमें बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं. महंत इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद् को जिम्मेदार मानते हैं.
संघ और विहिप के खिलाफ़ महंत ने अपना गुस्सा बड़े विचित्र तरीके से अभिव्यक्त किया. उन्होंने अपनी 25 बीघा जमीन मुसलमानों को बंटाई पर खेती करने के लिए दे दी है. काफ़ी दुनियादार तरीके से महंत ने कहा कि‘‘इससे कम से कम मुङो अपने खेतों में पैदा होने वाली फ़सल का एक हिस्सा तो मिलेगा और कोई जमीन पर कब्जा करने की कोशिश भी नहीं करेगा.’’महंत ठीक कहते हैं. पिछले दस सालों में विहिप ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अयोध्या के कई साधुओं के खिलाफ़ कई हथकंडों का प्रयोग किया है.
अयोध्या में अचल संपत्तियों के दाम आसमान छूने लगे हैं क्योंकि विहिप ने यहां बड़े-बड़े भूखंड खरीद लिए. जिससे स्थानीय साधू बहुत नाराज हैं.दरअसल, अयोध्या की अर्थव्यवस्था का पूरा ढांचा भक्तों, उनके द्वारा चढ़ाए जाने वाले प्रसाद और साधुओं के बड़े-बड़े आश्रमों के इर्द-गिर्द ही खड़ा है. पिछले दो दशकों में यहां की अर्थव्यवस्था भी खंडहर में तब्दील हो गई है. इसका कारण संघ-विहिप और भाजपा द्वारा चलाया गया आंदोलन है. विकास के सवाल पर अयोध्या को एकदम से नजरअंदाज कर दिए जाने के प्रश्न पर साधुओं में काफ़ी आक्रोश है.
अयोध्या को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने के सवाल पर यहां के साधू एकमत है.मंदिरों के शहर अयोध्या में आने वाले पर्यटकों की संख्या में गिरावट की शिकायत करते हुए महंत कहते हैं कि‘‘क्या अयोध्या को बनारस, हरिद्वार या इलाहाबाद जैसे शहरों की बराबरी में रखा जा सकता है?’’उनका मानना है कि विहिप के राम जन्मभूमि आंदोलन के चलते पर्यटकों ने अयोध्या आना बंद कर दिया है.
उन्होंने कहा कि ‘‘हिंदुत्व परिवार की तरफ़ से हर साल होने वाले आंदोलन के आह्वान ने हमारा जीवन दुश्वार कर दिया है.’’उन्होंने बताया की अयोध्या में सुरक्षाबलों की तैनाती के चलते चीजों की कीमतें आम आदमी की पहुंच से बाहर चली गई हैं. उनका कहना है कि‘‘अयोध्या को पर्यटकों को आकर्षित करने लायक सुविधाओं वाले एक आदर्श शहर के रूप में विकसित होने दीजिए.
’’यह धार्मिक उन्माद नहीं बल्कि ओर्थक समझदारी है, जिसने अयोध्या के साधुओं को समझदार बना दिया है. अब वे यह भी महसूस कर रहे हैं कि अयोध्या की बहुत छोटी मुसलिम आबादी भी उनकी समाजिक-ओर्थक जरूरत है. लेकिन साथ ही वे यह भी जानते हैं कि अयोध्या के मौजूदा हालात को बदलना लगभग असंभव है.
आखिर अयोध्या में मुद्दा क्या है? विहिप के अशोक सिंहल द्वारा अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के आह्वान से इस शहर के हर हिस्से में सन्नाटा पसर गया.इस मुद्दे पर अब लोगों की कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गयी है. हाइकोर्ट के फ़ैसले के बाद रामलला के दर्शन करने वालों की तादात में कोई वृद्धि न होना इसी बात का सबूत है. वहां सुरक्षा में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि दर्शनार्थियों की संख्या कमोबेश पहले के दिनों जितनी ही रही.
30 सितंबर को जब हाइकोर्ट का फ़ैसला आया तो कोई भी तबका शोक या प्रसन्नता का इजहार करने के लिए बाहर नहीं निकला. लोगों ने फ़ैसले के बारे में सुना और राहत की सांस ली. सुरक्षा के भारी-भरकम इंतजाम किए गए थे. इन सुरक्षा इंतजामों में लगे पुलिस अधिकारियों ने बताया कि लोगों ने खुद ही अपने ऊपर पाबंदियां आयद कर ली थीं, सुरक्षाबलों को कहीं कुछ नहीं करना पड़ा.मुसलमानों के बीच भी अपने पर पाबंदिया लगाना एकदम स्पष्ट था.
हाइकोर्ट के निर्णय के अगले दिन उत्तर प्रदेश के खुफ़िया विभाग ने शुक्रवार की नमाज के समय मसजिदों पर निगाह रखी और उन्हें वहां कुछ भी ऐसा नहीं सुनने को नहीं मिला जिसे भड़काऊ कहा जा सके. लोग उदास थे लेकिन उनमें आक्रोश नहीं था. कुछ नमाजियों ने कहा कि अनमने रूप से ही सही, लेकिन फ़ैसले को स्वीकार कर लेने का संदेश स्पष्ट है कि इस मामले पर उन्माद भड़काने की कोशिशों को कोई अपना समर्थन नहीं देगा.
लोगों का मूड ऐसा है कि इसके एक दिन बाद जब समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव इसलामिक संस्था नदवा पहुंचे तो उनके विचारों को लेकर कोई गर्मजोशी नहीं दिखाई पड़ी.क्या पिछले दो दशकों में राज्य के लोग शांतिप्रिय हो गए हैं? उत्तर प्रदेश के सांप्रदायिक हिंसा वाले अतीत को देखते हुए ऐसा कहना मुश्किल है.
लेकिन इस तरह के अनेक संकेतक हैं कि राज्य में हाल फ़िलहाल में हुए विकास और समतापूर्ण वितरण ने लोगों की चेतना में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं.लखनऊ विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर अरविंद मोहन कहते हैं कि यदि हम पिछले एक दशक के विकास के आंकड़े को देखें तो समझ में आएगा कि उत्तर प्रदेश ने अपना विकास का अलग मॉडल बनाया है. यद्यपि प्रदेश की विकास दर राष्ट्रीय विकास दर के औसत से कम है लेकिन अन्य मानक बताते हैं कि विकास का न्यायपूर्ण वितरण हुआ है. जिसका
मतलब है कि सरकार की भूमिका के चलते गरीबों को लाभ हुआ है. बहुजन समाज पार्टी के उभार के साथ ही ग्रामीण इलाकों में अंबेडकर योजना के नाम से विकास की अनेक योजनाएं चलायी जाती रही हैं. इस बीच कई बार सरकारें बदलीं लेकिन विकास योजनाएं लगभग एक जैसी ही रही हैं. अरविन्द मोहन कहते हैं कि ‘‘दलितों के उभार ने प्रशासन को गरीबों की जरूरतों के प्रति जवाबदेह बनाया है.
’’ लेकिन विकास के इस दौर में भी अयोध्या और उसके आस-पास के इलाके पीछे छूट गए हैं. औद्योगिक विकास पूरे इलाके में ठप पड़ा हुआ है. बेहतर संभावनाओं के बावजूद कृषि में कोई विकास नहीं दिखाई पड़ता. गोंडा, बस्ती और बहराइच जैसे जिलों की आर्थिक हालत देश के सबसे बदतर हालत वाले जिलों से बेहतर नहीं है.
लेकिन पिछले एक दशक में गरीबी के उन्मूलन के लिए चलाए गए कार्यक्रमों नेटी लोगों को विकास के फ़ायदों के प्रति जागरूक बनाया है. इस तरह के परिदृश्य में यह स्वाभाविक ही है कि उन्माद भड़काने की राजनीति पर अयोध्या के साधुओं समेत दूसरे लोगों की भौतिक इच्छाएं भारी पड़ी हैं. (लेखक गवर्नेस नाउ के मैनेजिंग ऐडटर हैं ) |
राजनितिक और लोगो की भावनाओं के साथ खेलने वाले लोगों ने कभी आम लोगो की भलाई के लिए कभी नहीं सोचा इतिहास इसका साक्षी है
जवाब देंहटाएंइन्होने केवल अपने भूख और लालसा की सोची है , ये लेख इसका प्रमाण है
dabirnews.blogspot.com