सुबह सुबह एक ख्वाब की दस्तक पर

सुबह सुबह एक ख्वाब की दस्तक पर
दरवाज़ा खोला, देखा,
सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आए है..

आँखो से मानूस थे सारे,
चेहरे सारे सुने सुनाए
पाओ धोए, हाथ धुलाए,
आँगन में आसन लगवाए,
और तंदूर पे मक्की के कुछ मोटे मोटे रोट पकाए

पोटली में मेहमान मेरे
पिछले सालों की फसलों का गुड लाए थे

आँख खुली तो देखा घर में कोई नहीं था,
हाथ लगा कर देखा तो तंदूर अभी तक बुझा नहीं था,
और होंठों पर मीठे गुड का ज़ायक़ा अब तक चिपक रहा था,

ख्वाब था शायद,
ख्वाब ही होगा,
सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली,
सरहद पर कल रात सुना है कुछ ख्वाबों का खून हुआ है...
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