इसे आप एक लोकतान्त्रिक देश की सबसे अलोकतांत्रिक गाथा कह सकते हैं. इसे आप एक ऐसी कहानी भी कह सकते हैं जिसका नायक और नायिका गाने नहीं गाती, नृत्य नहीं करती. जिसका नायक किसी की पिटाई नहीं करता बल्कि खुद पिट जाता है. हम दुनिया में भले ही सबसे बड़े लोकतान्त्रिक होने और और सॉफ्ट कंट्री होने की डुगडुगी बजाये. पर हम एक ऐसे ही देश में रहते हैं जहाँ नायक और नायिकाओं को जूतों से पीता जाता है.
सुबह के तक़रीबन 6 बजे होंगे जब दिल्ली के सर में लोग रजाई में दुबककर चाय पीना पसंद करते हैं, लगभग बीस सालों से पुरे देश में नुक्कड़ नाटकों की अलख जगाने वाले आम आदमी की जुबान बन चुके अरविन्द गौर काले कुर्ते पहने अपने रंगकर्मियों के साथ इंडिया गेट के अमर जवान ज्योति के पास पहुचने हैं.. देश दिल्ली के सड़क पर बस में एक लड़की के साथ हुए बलात्कार की आग में जल रहा है, लोग हर जगह जुट रहे हैं ..अरविन्द गौर भी लगभग सौ कलाकारों की टोली के साथ पहुचते हैं और गीत गाना शुरू करते हैं. गीत आम आदमी के, गीत विरोध के, गीत प्रतिरोध के ...स्वर ऊचा और ऊचा, और ऊचा इतना ऊचा स्वर की दिल्ली के कान के परदे फट जाएँ..
लोग जुटने लगते हैं कारवाँ बनता चला जाता है, पर, सत्ता को उची आवाज़ पसंद नहीं है..
नुक्कड़ नाटक में आवाज़ से हडकंप मचने वाली शिल्पी मारवाह संचालन करती है, ...लोग बढ़ते जाते हैं , लेकिन ये भीड़ नहीं बनती ये आवाज़ बन जाती है. लोग अनुशासित तरीके से अपनी बात कहते हैं सबके गुस्से में स्वर है शोर नहीं..हज़ारो के तादाद में लडकियां पहुचती है, अस्मिता थियेटर के कलाकार एक घेर बना देते हैं, लड़कियों को घेरे के अन्दर रखा जाता है. ककी उनको पता है सरकार इन लड़कियों को सुरक्षा घेरे में रखने में सक्षम नहीं है..लडकियां खुद को सुरक्षित महसूस करते ही, अपनी बात कहने लगती है, बहुत गुस्सा है, अरहुल के फूल से भी टः टः लाल इनके चेहरे गुस्से से भभकने लगते हैं.आखिर कैसे राष्ट्रीय राजधानी में किसी लड़की का ऐसे गंग रेप हो सकता है.. दिल्ली ये क्या हो गया है....पर, सत्ता नीरो है, इसको शोर पसंद नहीं है....
अचानक , पुलिस वालों का एक उन्मादी जत्था आता है और लड़कियों पर टूट पड़ता है. लाठी और आंसू गैस के बल पर पुलिस अस्मिता थियेटर के कलाकारों का सुरक्षा घेरा तोड़ देती है..
लड़कियों पर सत्ता की लाठियां टूट पड़ती है..हज़ारों मासूम और निर्दोष लड़कियों पर लाठियां, पानी के फव्वारे, आंसू गैस के गोले, पुरुषों द्वारा लड़कियों पर बरसाई गयी लाठियां और बूट...खून , चोट, आहें, कराहें और सिसकियाँ...
अरविन्द गौड़ |
शिल्पी मारवाह |
मन्नू चौधरी |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
sujhawon aur shikayto ka is duniya me swagat hai