लोकतंत्र की पीठ पर मनुवादी लाठी का ये क्रूर प्रहार और हमारी खामोशी- डॉ ओम सुधा

महाराष्ट्र के बीड़ में 25 लोगों ने मिलकर दो दलित युवकों की पिटाई। इन लड़कों की गलती केवल इतनी थी कि इन्होंने एक गाड़ी को ओवरटेक किया था। भीड़ ने दोनों को इतनी बेरहमी से पीटा कि उनके पूरे शरीर पर निशान पड़ गए हैं और फिलहाल इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हैं। मालेगांव के डीएसपी हरी बालाजी ने बताया कि मामले की जांच जारी है, लेकिन अभी तक इसमें कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। शिकायत के मुताबिक भीड़ ने गाड़ी पर लगी भीम राव आंबेडकर की तस्वीर देखने के बाद लड़कों को पीटना शुरू किया था।
गुजरात में गोरक्षा दल की पिटाई के विरोध में कल जंतर मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे दलितों पर आरएसएस समर्थित गुंडों ने हमला बोल दिया. चूँकि मैं खुद उस प्रदर्शन में मौजूद था इसलिए घटना की भयावहता को करीब से महसूस किया है मैंने. बहुत आश्चर्य होता है की कोई व्यक्ति समूह में आकर इतना क्रूर कैसे हो जाता है? किसी मासूम किसी मजलूम  की पीठ पर पूरी ताकत से कैसे कोई लाठी चलाता है? कहाँ से आती है इतनी क्रूरता ? समूह में इस तरह मजलूमों पर ज़ुल्म ढाने वाला अपने घर में अपनी माँ , अपनी बहन , भाई, बच्चों और परिवार वालों के साथ कैसा व्यवहार करता होगा? इतना क्रूर व्यक्ति भी घर जाकर अपने बच्चों को गोद में लेकर प्यार करता होगा? ये सवाल मुझे हमेशा से परेशान करता रहता है.. इस तरह का कोई आदमी मिला जो दंगे में किसी व्यक्ति को मारा हो , किसी दलित को पीट चुका हो, तो उससे पूछुंगा जरूर . कैसे कर लेते हो? कहाँ से लाते हो इतनी क्रूरता ? क्या तुम भी हमारी तरह मुस्कुराते हो या अट्टहास करते हो ? 
अभी दलितों पर हो रहे सारे अत्याचार में हिंदुत्व विचारधारा वाले लोग शामिल रहे हैं. इतनी कट्टर विचारधारा का समर्थन कैसे कोई कर सकता है? पर हम करते हैं. इसका मतलब है की हम बीमार लोग हैं, हमारा समाझ बीमार है . हमारा देश बीमार है. हम सबको इलाज की जरुरत है.
ऐसा नहीं है की दलित उत्पीडन की घटनाएं नयी हैं. सरकार किसी की भी हो दलितों का उत्पीडन होता रहा है. पर पिछले दो सालों में इसके अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी के पीछे ये कारण नज़र आता है की अब इनको सत्ता का संरक्षण प्राप्त हो गया है. सत्ता ने अब इनको लाइसेंस दे दिया है की दिन दहाड़े किसी मुसलमान  को पीट पीट कर मार डालो.  किसी दलित की इतना पीटो की वो तो ज़िंदा रह जाय पर उसका स्वाभीमान मर जाय. 
दलित समाज बिलख रहा है. सवर्ण समाज चुप है. उनकी चुप्पी उनकी सहमति है. दलित समाज चीत्कार रहा है.. सवर्ण समाज का प्रगतिशील तबका च्च्च कर के रिमोट से चैनल बदल दे रहा है... सरकारें जश्न मना रही हैं.. पेट पर टिका समाज चैनल बदल दे रहा है.. दलित चीख रहा है.. उसकी पीठ पर फटाक फटाक लाठी बरस रही है.. हम लोकतंत्र और विकास पर्व मना रहे हैं.. 
(लेखक अंबेडकर फुले युवा मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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