एक शिक्षक का इकरारनामा - डॉ योगेंद्र

मैं कुछ बातें साफ-साफ कह देना चाहता हूँ।पसंद आये तो मित्र रहें,वरना आपकी इच्छा हो तो आप अलग हो जायें।पहली बात,मैं न हिन्दूवाद में विश्वास रखता हूँ,न मुस्लिमवाद में और न ईसाईवाद में।ये वाद मनुष्य निर्मित हैं और इसके माध्यम से कुछ लोगों या समूहों की स्वार्थ-सिद्धि होती है। इसलिए मैं इसका कटु आलोचक हूँ।मैं महसूस करता हूँ कि जब हिन्दूवाद की कट्टरता पर प्रहार करता हूँ तो तथाकथित हिन्दू मित्र ख़फ़ा हो जाते हैं और गालियॉं लिखने लगते हैं।उसीतरह से मुस्लिमवाद की कट्टरता पर प्रहार करता हूँ तो तथाकथित मुस्लिम बिगड़ उठते हैं।मेरे लिए कोई अंतर नहीं पड़ता ,क्योंकि मैं सिर्फ मनुष्य में विश्वास करता हूँ।
दूसरी बात,मैं जाति में विश्वास नहीं रखता।इसलिए मैं सवर्णवाद, पिछड़ावाद या दलितवाद में विश्वास नहीं करता।हॉं जिस भी समूह पर ज़ुल्म होता है,मैं उस समूह के पक्ष में होता हूँ।दलितों और पिछड़ों पर ज़्यादा ज़ुल्म होते हैं,मैं उनके पक्ष में होता हूँ।नतीजा है कि किसी को लग सकता है कि पिछड़ों और दलितों के प्रति झुका हुआ हूँ ,इसलिए जातिवादी हूँ।इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।आप मानते रहें,मानें।मेरा यह विश्वास है कि जिस पर ज़ुल्म हो रहा हो,उसके पक्ष में खड़े हों। तीसरी बात,मेरे लिए नर-नारी में कोई भेद नहीं है। नारियों के प्रति समाज बहुत सह्रदय नहीं रहा है।ज़रूरत है कि समाज को जीने लायक बनायें जिसमें सबका सम्मान क़ायम रहे।चौथी बात,मैं लोकतंत्र में विश्वास रखता हूँ।तमाम कमियों के बाद भी लोकतंत्र बेहतर व्यवस्था है।मनुष्य को रोटी के साथ सम्मान भी चाहिए।विचारों की अभिव्यक्ति भी।साम्यवादी या दक्षिणपंथी व्यवस्था में अक्सर देखा जाता है कि दूसरों के विचारों के प्रति वे निर्मम होते हैं।विरोधियों को नष्ट करने यहॉं तक कि विरोधियों की हत्या करने की कोशिश आम बात है।मैं इससे पूरी तरह असहमत हूं।जिन साथियों को लगता है कि यह सही नहीं है,वे मुझे अमित्र कर दें।मुझे बहुत बुरा लगता है कि मेरे पोस्ट पर आयें और गालियॉं लिखें।मैं व्यक्तिगत रूप से जिससे असहमत रहता हूं,उस पर क़तई अपशब्दों इस्तेमाल नहीं करता।
२२ जनवरी २०१६ को यह लिखा था।अक्षरशः इस पर मैं कायम हूं।

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