दलितों-पिछड़ों की रहनुमाई का दावा करने वालों के राज में ये क्या हो रहा है - डॉ मुकेश

ये तस्वीर बीजेपी शासित राज्य गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश अथवा झारखंड की नहीं हैं। ये तस्वीर संघ मुक्त भारत बनाने के दावेदारों के राज्य बिहार की हैं। एक तस्वीर अररिया जिले की है, जहां पिछले दिनों सत्ता संरक्षित दबंगों-भू माफियाओं ने महादलितों को आजाद भारत में बांधकर पुलिस की मौजूदगी में लहूलुहान कर दिया है। ये लोग उस हमले में जिंदा बच गये हैं, जबकि इनमें से चार लोगों को तो मौत के घाट भी उतार दिया गया। दूसरी तस्वीर बिहार के ही भागलपुर जिले की है। दूसरी घटना को अंजाम यहाँ की सत्ता की पुलिस ने ही दिया है। अनशनकारियों को डीएम कार्यालय के पास से उठाकर पुलिस हाजत में बंद कर पहले तो बुरी तरह मारा-पीटा गया उसके बाद कमर में रस्सा बांधकर जेल भेज दिया गया था। इस घटना की कई और भी तस्वीरें मौजूद हैं, जो सामाजिक न्याय और गरीबों-दलितों के नाम पर राज्य में चलने वाली सियासत को बेपर्द करती है। 
अररिया और भागलपुर दोनों की घटनाओं में काफी समानता है। दोनों मामले गरीब-दलित-भूमिहीन से जुड़े हुए हैं। अररिया में जहां गरीब-दलित अपने वास भूमि को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे, वहीं भागलपुर में वास भूमि के लिए लड़ रहे थे। और एक समानता है कि दोनों घटनाओं में सुशासन बाबू की पुलिस का इन्वाल्वमेंट है। भागलपुर में डीएम ऑफिस परिसर में एसडीओ-डीएसपी के नेतृत्व में गरीब-भूमिहीन महिलाओं पर हमला बोल कर लहूलुहान कर दिया था, छह महिलाएं बुरी तरह जख्मी हुई थीं और दर्जनों स्त्री-पुरुष घायल हुए थे। इन दोनों घटनाओं पर न्याय के साथ विकास का नारा और बिहार में बहार है का गीत बजवाने वाले नीतीश- लालू ने मुंह नहीं खोला है, यह एक और समानता है इन दोनों घटनाओं में। नीतीश कुमार अभी सात निश्चय लेकर बिहार यात्रा में व्यस्त हैं, तो लालू प्रसाद जी संघ-बीजेपी की आलोचना में तल्लीन हैं। यहाँ एक सवाल उठना लाजिम है कि दलितों-पिछड़ों की रहनुमाई का दावा करने वालों के राज में ये क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है? गरीबों-दलितों को सुरक्षा-सम्मान की गारंटी क्यों नहीं है? बीजेपी शासित राज्यों और बिहार में आखिर क्या फर्क रह जाता है? बीजेपी के खिलाफ बिहार के गरीबों-दलितों ने क्या यही दिन देखने के लिए इन्हें जनादेश दिया था? आखिर राज्य में सामन्ती ताकतों-दबंगों-भूमाफियों का मनोबल और पुलिस का यह रवैया क्यों सामने आ रहा है? गरीबों-दलितों के पक्ष में भूमि सुधार क्यों नहीं हुआ बिहार में? जबकि पिछले तीन दशक से इन्हीं दोनों की सरकार चलती रही है। इन सारे सवालों का जवाब और हिसाब तो इन्ही दोनों सूरमाओं से लेना होगा!
पूरे सूबे में सामंतों-दबंगों ने गरीब-दलित-भूमिहीनों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। अररिया, भागलपुर में गरीबों दलितों के बहे खून अभी सूख भी न पाये थे कि सहरसा में दबंगों-सामंतों ने डेढ़ सौ से ज्यादा दलितों के घर फूँक दिये। इससे पहले भागलपुर जिले के रंगरा प्रखण्ड में नीतीश की पार्टी जदयू के ही दबंग प्रखण्ड अध्यक्ष के नेतृत्व में अत्यंत पिछड़ी जाति और दलितों के एक सौ से ज्यादा घर फूँक दिये गये थे और दर्जनों लोगों पर दिनदहाड़े कातिलाना हमला कर उन्हें लहूलूहान कर दिया गया था। आज तक इस घटना के मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो पायी है और पीड़ित परिवार खौफ के साये में जीने को मजबूर है।

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