रोया हूँ आज जितना ,कोई और रो सकेगा ?

मेरा नहीं हुआ वो ,ये ग़म नहीं है मुझको ।
अफ़सोस ये के अब वो ,किसी का ना हो सकेगा ।

सब रंज  ग़म भुलाकर ,उसको गले लगाकर 
रोया हूँ आज जितना ,कोई और रो सकेगा ?

जाने कितने ग़म मिले हैं ,मुझको हंसी के बदले 
मैं क्या करूँ के मुझसे रोना ना हो सकेगा ।

मैली ही क्यों करें अब ,चादर कबीर की हम 
जब जानते हैं हमसे ,धोना ना हो सकेगा ।

पाया है जबसे तुझको ,तुझमें ही खो गया हूँ 
अब और कुछ भी पाना ,खोना ना हो सकेगा ।



उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो ,
 जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए ।
और
मुसाफिर हैं हम भी ,मुसाफिर हो तुम भी ,
किसी मोड़ पर फ़िर मुलाक़ात होगी ।

इसी तरह के कई शेर है .हमें गर्व है की बद्र साहब हमारे शहर की शान हैं .यूँ तो मुझेउनकी कई गज़लें पसंद हैं पर सबका यहाँ होना मुमकिन नही पर मेरी पसंदीदाग़ज़लों में से एक आपकी खिदमत में पेश है -

अब किसे चाहें किसे ढूंढा करें ,
वो भी आखिर मिल गया अब क्या करें ।

हलकी -हलकी बारिशें होती रहें ,
हम भी फूलों की तरह भीगा करें ।

दिलमोहब्बत ,दीन,दुनिया ,शायरी ,
हर दरीचे से तुझे देखा करें ।

आँख मूंदे उस गुलाबी धूप में ,
देर तक बैठे उसे सोचा करें ।

घर नया ,बर्तन नए ,कपड़े नए ,
इन पुराने कागजों का क्या करें ।

रविवार, ८ मार्च २००९

एक लम्हा जाते -जाते कान में ये कह गया
अब  लौटेगा वो आंसू ,आंख से जो बह गया ।

कुछ तो माजी से मिले हैं और कुछ ताजे भी हैं
और भी एक ज़ख्म है जो भरते-भरते रह गया ।

गुनगुनाने के लिए छेड़ी जो मैंने एक ग़ज़ल
क्यूँ किसी की आंख से सारा समंदर बह गया ।

बुनियाद पक्की चाहिए ईमारत --बुलंद को
एक मकां जो ताश का था बस हवा से ढह गया ।

वक्त की इस धूप ने मुझको बनाया सख्त जाँ
चोट गहरी थी मगर मैं मुस्कुरा के सह गया ।

सीमा

बृहस्पतिवार, ५ मार्च २००९

यही हालात इब्तिदा से रहे
लोग हमसे खफा -खफा से रहे |

बेवफा तुम कभी  थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफा से रहे |

इन चरागों में तेल ही कम था
क्यों गिला फ़िर हमें हवा से रहे |

उसके बन्दों को देख कर कहिये
हमको उम्मीद क्या खुदा से रहे

जिंदगी की शराब मांगते हो
हम को देखो के पी के प्यासे रहे |


जावेद जाँ निसार 'अख्तर '

शनिवार, २८ फरवरी २००९

कुछ  बाकी रहा छिपाने को
सब पता चल गया ज़माने को |
जिसको दिल से लगा के रक्खा है
,
 वो तड़पता है दूर जाने को |

रोज़ रो -रो के थक गई ऑंखें ,
मिले मुझे भी कोई शाम खिलखिलाने को |

रात हो ,नींद हो और ऐसा हो , 
कोई
 आए नही जगाने को |

खुशबु ही बस नहीं है ,इन कागजी फूलों में
वैसे अच्छे हैं ,गुलदान में सजाने को |

दिल तो दिल है ,कोई पहाड़ नहीं
एक खिलौना है टूट जाने को |

आँख का आंसू समझ कर तुम भी मुझको भूल जाना
हैं हजारों लोग किसको याद रखता है ज़माना ।

इश्क का सौदा हमेशा आंसुओं के मोल होगा
लाख मुस्कानें लुटाओ बदले में आंसू है पाना ।

इस जहाँ से उस जहाँ तक कोई भी अपना नहीं
यूँ तो कहने को सभी से है हमारा दोस्ताना ।

हाँ नही होंगे तो क्या हमसे हजारों लोग होंगे
इस सराय- -फानी में होता रहेगा आना जाना ।

रत -दिन मेरे साथ रह कर वो  समझा दर्दे दिल
मैंने भी समझा मुनासिब दर्द को हँस के छिपाना .

रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे
फ़िर वहीँ लौट के  जाता हूँ
बारह तोड़ चुका हूँ जिनको
इन्ही दीवारों से टकराता हूँ
रोज़ बसते हैं कई शहर नए
रोज़ धरती में समा जाते हैं
ज़लज़लों में थी ज़रा सी गिरह
वो भी अब रोज़ ही  जाते हैं


जिस्म से रूह तलक,रेत ही रेत
 कहीं धूप, साया , सराब
कितने अरमान हैं किस सेहरा में
कौन रखता है मजारों का हिसाब
नफ्ज़ बुझती भी,भड़कती भी है
दिल का मामूल है घबराना भी
रात,अंधेरे ने अंधेरे से कहा
इक आदत है जिए जाना भी 

आँख का आंसू समझ कर तुम भी मुझको भूल जाना
हैं हजारों लोग किसको याद रखता है ज़माना ।

इश्क का सौदा हमेशा आंसुओं के मोल होगा
लाख मुस्कानें लुटाओ बदले में आंसू है पाना ।

इस जहाँ से उस जहाँ तक कोई भी अपना नहीं
यूँ तो कहने को सभी से है हमारा दोस्ताना ।

हाँ नही होंगे तो क्या हमसे हजारों लोग होंगे
इस सराय- -फानी में होता रहेगा आना जाना ।

रत -दिन मेरे साथ रह कर वो  समझा दर्दे दिल
मैंने भी समझा मुनासिब दर्द को हँस के छिपाना .

आँख का आंसू समझ कर तुम भी मुझको भूल जाना
हैं हजारों लोग किसको याद रखता है ज़माना ।

इश्क का सौदा हमेशा आंसुओं के मोल होगा
लाख मुस्कानें लुटाओ बदले में आंसू है पाना ।

इस जहाँ से उस जहाँ तक कोई भी अपना नहीं
यूँ तो कहने को सभी से है हमारा दोस्ताना ।

हाँ नही होंगे तो क्या हमसे हजारों लोग होंगे
इस सराय- -फानी में होता रहेगा आना जाना ।

रत -दिन मेरे साथ रह कर वो  समझा दर्दे दिल
मैंने भी समझा मुनासिब दर्द को हँस के छिपाना .

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